तन पर लपेटे
फटे व पुराने कपड़े
वह सांवली सी लड़की,
कर रही थी कोशिश
शायद ढक पाये
तन को अपने,
हर बार ही होती शिकार वह
असफलता और हीनता का
समाज की क्रूर व निर्दयी निगाहें
घूर रहीं थी उसके खुलें तन को,
हाथ में लिए खुरपे से
चिलचिलाती धूप के तले
तोड़ रही थी वह पेड़ो से छाल
और कर रही थी जद्दोजहद जिंदगी से अपने
तन पर लपेटे फटे व पुराने कपड़े
वह सावंली सी लड़की ।