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बुधवार, 7 अक्तूबर 2009

हिन्दी शब्द कहां से आया ?????????

जैसा की हम जानते है कि हिन्दी हमारी मातृ भाषा है। हिन्दी प्रमियो के लिए यह माह कुछ खास होता है, कारण साफ है हिन्दी दिवस जल्द ही बीता है। तो क्यों ना ये भी जाना जायें कि हिन्दी "शब्द" कहाँ से और कैसे आया। हिन्दी संवैधानिक रूप से भारत की प्रथम राजभाषा है और भारत की सबसे ज्यादा बोली और समझी जानेवाली भाषा है। चीनी के बाद यह विश्व में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा भी है। हिन्दी और इसकी बोलियाँ उत्तर एवं मध्य भारत के विविध प्रांतों में बोली जाती हैं । भारत और विदेश में ६० करोड़ (६०० मिलियन) से अधिक लोग हिन्दी बोलते, पढ़ते और लिखते हैं। फ़िजी, मॉरिशस, गयाना, सूरीनाम की अधिकतर और नेपाल की कुछ जनता हिन्दी बोलती है।

हिन्दी राष्ट्रभाषा, राजभाषा, सम्पर्क भाषा, जनभाषा के सोपानों को पार कर विश्वभाषा बनने की ओर अग्रसर है। भाषा विकास क्षेत्र से जुड़े वैज्ञानिकों की भविष्यवाणी हिन्दी प्रेमियों के लिए बड़ी सन्तोषजनक है कि आने वाले समय में विश्वस्तर पर अन्तरराष्ट्रीय महत्त्व की जो चन्द भाषाएँ होंगी उनमें हिन्दी भी प्रमुख होगी। हिन्दी शब्द का सम्बंध संस्कृत शब्द सिन्धु से माना जाता है। 'सिन्धु' सिन्ध नदी को कहते थे ओर उसी आधार पर उसके आसपास की भूमि को सिन्धु कहने लगे। यह सिन्धु शब्द ईरानी में जाकर ‘हिन्दु’, हिन्दी और फिर ‘हिन्द’ हो गया। बाद में ईरानी धीरे-धीरे भारत के अधिक भागों से परिचित होते गए और इस शब्द के अर्थ में विस्तार होता गया तथा हिन्द शब्द पूरे भारत का वाचक हो गया। इसी में ईरानी का ईक प्रत्यय लगने से (हिन्द ईक) ‘हिन्दीक’ बना जिसका अर्थ है ‘हिन्द का’। यूनानी शब्द ‘इन्दिका’ या अंग्रेजी शब्द ‘इण्डिया’ आदि इस ‘हिन्दीक’ के ही विकसित रूप हैं। हिन्दी भाषा के लिए इस शब्द का प्राचीनतम प्रयोग शरफुद्दीन यज्+दी’ के ‘जफरनामा’(१४२४) में मिलता है। भाषाविद हिन्दी एवं उर्दू को एक ही भाषा समझते हैं । हिन्दी देवनागरी लिपि में लिखी जाती है और शब्दावली के स्तर पर अधिकांशत: संस्कृत के शब्दों का प्रयोग करती है । उर्दू फारसी लिपि में लिखी जाती है और शब्दावली के स्तर पर उस पर फारसी और अरबी भाषाओं का ज़्यादा असर है । व्याकरणिक रुप से उर्दू और हिन्दी में लगभग शत-प्रतिशत समानता है - सिर्फ़ कुछ खास क्षेत्रों में शब्दावली के स्त्रोत (जैसा कि ऊपर लिखा गया है) में अंतर होता है। कुछ खास ध्वनियाँ उर्दू में अरबी और फारसी से ली गयी हैं और इसी तरह फारसी और अरबी के कुछ खास व्याकरणिक संरचना भी प्रयोग की जाती है। अतः उर्दू को हिन्दी की एक विशेष शैली माना जा सकता है। प्रो0 महावीर सरन जैन ( सेवानिवृत्त निदेशक, केन्द्रीय हिन्दी संस्थान)हिन्दी एवं उर्दू को एक ही भाषा समझते हैं ।ईरान की प्राचीन भाषा अवेस्ता में 'स्' ध्वनि नहीं बोली जाती थी। 'स्' को 'ह्' रूप में बोला जाता था। जैसे संस्कृत के 'असुर' शब्द को वहाँ 'अहुर' कहा जाता था।

अफ़ग़ानिस्तान के बाद सिन्धु नदी के इस पार हिन्दुस्तान के पूरे इलाके को प्राचीन फ़ारसी साहित्य में भी 'हिन्द', 'हिन्दुश' के नामों से पुकारा गया है तथा यहाँ की किसी भी वस्तु, भाषा, विचार को 'एडजेक्टिव' के रूप में 'हिन्दीक' कहा गया है जिसका मतलब है 'हिन्द का'। यही 'हिन्दीक' शब्द अरबी से होता हुआ ग्रीक में 'इंदिके', 'इंदिका', लैटिन में 'इंदिया' तथा अँगरेज़ी में 'इंडिया' बन गया। अरबी एवं फ़ारसी साहित्य में हिन्दी में बोली जाने वाली ज़बानों के लिए 'ज़बान-ए-हिन्दी', लफ़्ज का प्रयोग हुआ है। भारत आने के बाद मुसलमानों ने 'ज़बान-ए-हिन्दी', 'हिन्दी जुबान' अथवा 'हिन्दी' का प्रयोग दिल्ली-आगरा के चारों ओर बोली जाने वाली भाषा के अर्थ में किया। भारत के गैर-मुस्लिम लोग तो इस क्षेत्र में बोले जाने वाले भाषा-रूप को 'भाखा' नाम से पुकराते थे, 'हिन्दी' नाम से नहीं। जिस समय मुसलमानों का यहाँ आना शुरु हुआ उस समय भारत के इस हिस्से में साहित्य-रचना शौरसेनी अपभ्रंश में होती थी। बाद में डिंगल साहित्य रचा गया। मुग़लों के काल में अवधी तथा ब्रज में साहित्य लिखा गया। आधुनिक हिन्दी साहित्य की जो जुबान है, उस जुबान 'हिन्दवी' को आधार बनाकर रचना करने वालों में सबसे पहले रचनाकार का नाम अमीर खुसरो है जिनका समय 1253 ई. से 1325 ई. के बीच माना जाता है। ये फ़ारसी के भी विद्वान थे तथा इन्होंने फ़ारसी में भी रचनाएँ लिखीं मगर 'हिन्दवी' में रचना करने वाले ये प्रथम रचनाकार थे। हिन्दुस्तान में एक ही देश, एक ही जुबान तथा एक ही जाति के मुसलमान नहीं आए। सबसे पहले यहाँ अरब लोग आए। अरब सौदागर, फ़कीर, दरवेश सातवीं शताब्दी से आने आरंभ हो गए थे तथा आठवीं शताब्दी (711-713 ई. ) में अरब लोगों ने सिन्ध एवं मुलतान पर कब्जा कर लिया। इसके बाद तुर्की के तुर्क तथा अफ़ग़ानिस्तान के पठान लोगों ने आक्रमण किया तथा यहाँ शासन किया। शहाबुद्दीन गौरी (1175-12.6) के आक्रमण से लेकर गुलामवंश (12.6-129.), खिलजीवंश (129.-132.), तुगलक वंश (132.-1412), सैयद वंश (1414-1451) तथा लोदीवंश (1451-1526) के शासनकाल तक हिन्दुस्तान में तुर्क एवं पठान जाति के लोग आए तथा तुर्की एवं पश्तो भाषाओं तथा तुर्क-कल्चर तथा पश्तो-कल्चर का प्रभाव पड़ा। मुगल वंश की नींव डालने वाले बाबर का संबंध यद्यपि मंगोल जाति से कहा जाता है और बाबर ने अपने को मंगोल बादशाह 'चंगेज़ खाँ' का वंशज कहा है और मंगोल का ही रूप 'मुगल' हो गया मगर बाबर का जन्म मध्य एशिया क्षेत्र के अंतर्गत फरगाना में हुआ था। मंगोल एवं तुर्की दोनों जातियों का वंशज बाबर वहीं की एक छोटी-सी रियासत का मालिक था। उज्बेक लोगों के द्वारा खदेड़े जाने के बाद बाबर ने अफ़ग़ानिस्तान पर कब्जा किया तथा बाद में 1526 ई. में भारत पर आक्रमण किया। बाबर की सेना में मध्य एशिया के उज्बेक़ एवं ताज़िक जातियों के लोग थे तथा अफ़ग़ानिस्तान के पठान लोग थे। बाबर का उत्तराधिकारी हुमायूँ जब अफ़गान नेता शेरखाँ (बादशाह शेरशाह) से युध्द में पराजित हो गया तो उसने 154. ई. में 'ईरान' में जाकर शरण ली। 15 वर्षों के बाद 1555 ई. में हुमायूँ ने भारत पर पुन: आक्रमण कर अपना खोया हुआ राज्य प्राप्त किया। 15 वर्षों तक ईरान में रहने के कारण उसके साथ ईरानी दरबारी सामन्त एवं सिपहसालार आए। हुमायूँ, अकबर, जहाँगीर, शाहजहाँ, औरंगजेब आदि मुगल बादशाह यद्यपि ईरानी जाति के नहीं थे, 'मुगल' थे (तत्वत: मंगोल एवं तुर्की जातियों के रक्त मिश्रण के वंषधर) फिर भी इन सबके दरबार की भाषा फ़ारसी थी तथा इनके शासनकाल में पर्शियन कल्चर का हिन्दुस्तान की कल्चर पर अधिक प्रभाव पड़ा।