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रविवार, 27 मार्च 2011

चंद सवालात {गजल} सन्तोष कुमार "प्यासा"

ए महबूब ! फिर कर रहा, ये नादाँ, वही पुरानी बात तुझसे
कौंधते है जो ज़हेन में, पूंछने है वही चंद सवालात तुझसे
कब पहुंचेगी अर्सा-ए-दहर की तपिश में ठण्ढक
अभी क्या देर है, वस्ल-ए-सब को, आखिर कब होगी मुलाकात तुझसे
क्यूँ भटकता दर-बदर आरजू-ए-काफिला दिल का
कब पाएगी ये बेजाँ रूह, नूर-ए-हयात तुझसे
तेरे इश्क की मीरास है, फिर क्यूँ माजूर हूँ मै
भला कब पाएगी बुझती शमाँ, दरख्शां सबात तुझसे
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(अर्सा-ए-दहर= संसार का मैदान, वस्ल-ए-सब= मिलन की शाम, नूर-ए-हयात= जीवन का उजाला, मीरास= धरोहर ,  दरख्शां=चमकने वाला, चमकीला )

6 comments:

Mithilesh dubey ने कहा…

लाजवाब प्रस्तुति के लिये बहुत-बहुत आभार ।

आपका अख्तर खान अकेला ने कहा…

bhtrin lekhn shukriyaa . akhtar khan akela kota rajsthan

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बड़ी सुन्दर प्रस्तुति।

Ankur Mishra "yugal" ने कहा…

ky bat hai...

डॉ. दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

sunder rachna
aalekh

daanish ने कहा…

ख़यालात
अच्छे हैं ... !!