ए महबूब ! फिर कर रहा, ये नादाँ, वही पुरानी बात तुझसे
कौंधते है जो ज़हेन में, पूंछने है वही चंद सवालात तुझसे
कब पहुंचेगी अर्सा-ए-दहर की तपिश में ठण्ढक
अभी क्या देर है, वस्ल-ए-सब को, आखिर कब होगी मुलाकात तुझसे
क्यूँ भटकता दर-बदर आरजू-ए-काफिला दिल का
कब पाएगी ये बेजाँ रूह, नूर-ए-हयात तुझसे
तेरे इश्क की मीरास है, फिर क्यूँ माजूर हूँ मै
भला कब पाएगी बुझती शमाँ, दरख्शां सबात तुझसे
****************************************
***********
(अर्सा-ए-दहर= संसार का मैदान, वस्ल-ए-सब= मिलन की शाम, नूर-ए-हयात= जीवन का उजाला, मीरास= धरोहर , दरख्शां=चमकने वाला, चमकीला )
कौंधते है जो ज़हेन में, पूंछने है वही चंद सवालात तुझसे
कब पहुंचेगी अर्सा-ए-दहर की तपिश में ठण्ढक
अभी क्या देर है, वस्ल-ए-सब को, आखिर कब होगी मुलाकात तुझसे
क्यूँ भटकता दर-बदर आरजू-ए-काफिला दिल का
कब पाएगी ये बेजाँ रूह, नूर-ए-हयात तुझसे
तेरे इश्क की मीरास है, फिर क्यूँ माजूर हूँ मै
भला कब पाएगी बुझती शमाँ, दरख्शां सबात तुझसे
****************************************
(अर्सा-ए-दहर= संसार का मैदान, वस्ल-ए-सब= मिलन की शाम, नूर-ए-हयात= जीवन का उजाला, मीरास= धरोहर , दरख्शां=चमकने वाला, चमकीला )
6 comments:
लाजवाब प्रस्तुति के लिये बहुत-बहुत आभार ।
bhtrin lekhn shukriyaa . akhtar khan akela kota rajsthan
बड़ी सुन्दर प्रस्तुति।
ky bat hai...
sunder rachna
aalekh
ख़यालात
अच्छे हैं ... !!
एक टिप्पणी भेजें