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बुधवार, 27 जनवरी 2010

अवतरण ---- (डा श्याम गुप्त )

यह कंचन सा रूप तुम्हारा,

निखर उठा सुरसरि धारा में,

जैसे सोनपरी सी कोई ,

हुई अवतरित सहसा जल में,

अथवा पद वंदन को उतरा ;

स्वयं इंदु ही गंगा- जल में ||