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शुक्रवार, 2 जुलाई 2010

रिश्ते बंद है आज चंद कागज के टुकड़ो में.....................नीशू तिवारी


रिश्ते बंद है आज

चंद कागज के टुकड़ो में,

जिसको सहेज रखा है मैंने

अपनी डायरी में,

कभी-कभी खोलकर

देखता हूँ उनपर लिखे हर्फों को

जिस पर बिखरा है

प्यार का रंग,

वे आज भी उतने ही ताजे है

जितना तुमसे बिछड़ने से पहले,

लोग कहते हैं कि बदलता है सबकुछ

समय के साथ,

पर

ये मेरे दोस्त

जब भी देखता हूँ

गुजरे वक्त को,

पढ़ता हूँ उन शब्दो को

जो लिखे थे तुमने,

गूजंती है तुम्हारी

आवाज कानो में वैसे ही,

सुनता हूँ तुम्हारी हंसी को

ऐसे मे दूर होती है कमी तुम्हारी,

मजबूत होती है

रिश्तो की डोर

इन्ही चंद पन्नो से,

जो सहेजे है मैंने

न जाने कब से।।

बहते आंसू {कविता} सन्तोष कुमार "प्यासा"

देख रहा हूँ मै

वेदना की वृष्टि ने

तुम्हारे धैर्य के बांध को तोड़ दिया है

उर का विषाद

पलकों पर भारी है

तुम ममता के बन्धनों

को तोड़ चुकी हो

ये महज़ बहते आंसू नहीं

ये प्रवाह है

प्रलय का

विनाश का

हे नारी !

अब तुम सहनशीलता के

सभी बंधन पार कर चुकी हो

सूख गए है बहते आंसू !

अब परम्पराओं के बंधन तुम्हे

और अधिक नहीं रोक सकते

अब इज्ज़त आबरू की बेढीया

तुम्हारे अस्तित्व को नहीं बांध सकती

अब तुम चंडी बन चुकी हो

समाज के खोखले नियम

अब तुम पर लागू नहीं है

तुमने मज़बूरी को

अश्रुओं संग बहा दिया है

अब तुम्हारे आँखों से मर्माग्नी बह रही है

न की मज़बूरी में

बहते आंसू...........