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बुधवार, 9 मार्च 2011

लहर {कविता} सन्तोष कुमार "प्यासा"



तुम्हे याद है हम दोनों पहले यहाँ आते थे

घंटो रेत पर बैठ कर,

एक दूसरे की बातों में खो जाते थे

तुम घुटनों तक उतर जाती थी सागर के पानी में

और मै किनारे खड़ा तुम्हे देखता था

पहले तो तुम बहुत चंचल थी

लेकिन अब क्यों हो गई हो

समुद्र की गहराई की तरह शांत

और मै बेकल जैसे समुद्र में उठती लहर...

7 comments:

Er. सत्यम शिवम ने कहा…

संतोष भाई..बहुत ही सुंदर कविता.....मजा आ गया पढ़ कर।
एक साथ कई रहस्यों को खुद में समेटे ये रचना उत्कृष्ट है....बधाई।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

समय का फेर है ... और इस फेर को बखूबी समेटा है आपने इन शब्दों में ... बहुत लाजवाब ...

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

समुद्र और लहर, यही जीवन है।

Patali-The-Village ने कहा…

बहुत लाजवाब कविता| धन्यवाद|

बेनामी ने कहा…

ati sundar bhav srijan

--Mayank

वीना श्रीवास्तव ने कहा…

बहुत ही खूबसूरत रचना...कम शब्दों में भावों की सुंदर अभिव्यक्ति...

सुनीता शानू ने कहा…

बहुत सुन्दर कविता है।