तुम्हे याद है हम दोनों पहले यहाँ आते थे
घंटो रेत पर बैठ कर,
एक दूसरे की बातों में खो जाते थे
तुम घुटनों तक उतर जाती थी सागर के पानी में
और मै किनारे खड़ा तुम्हे देखता था
पहले तो तुम बहुत चंचल थी
लेकिन अब क्यों हो गई हो
समुद्र की गहराई की तरह शांत
और मै बेकल जैसे समुद्र में उठती लहर...
7 comments:
संतोष भाई..बहुत ही सुंदर कविता.....मजा आ गया पढ़ कर।
एक साथ कई रहस्यों को खुद में समेटे ये रचना उत्कृष्ट है....बधाई।
समय का फेर है ... और इस फेर को बखूबी समेटा है आपने इन शब्दों में ... बहुत लाजवाब ...
समुद्र और लहर, यही जीवन है।
बहुत लाजवाब कविता| धन्यवाद|
ati sundar bhav srijan
--Mayank
बहुत ही खूबसूरत रचना...कम शब्दों में भावों की सुंदर अभिव्यक्ति...
बहुत सुन्दर कविता है।
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