होगी तलाशे इत्र ये मछली बज़ार में
निकले तलाशने जो वफ़ा आप प्यार में
चल तो रहा है फिर भी मुझे ये गुमाँ हुआ
थम सा गया है वक्त तेरे इन्तजार में
जब भी तुम्हारी याद ने हौले से आ छुआ
कुछ राग छिड़ गये मेरे मन के सितार में
किस्मत कभी तो पलटेंगे नेता गरीब की
कितनों की उम्र कट गयी इस एतबार में
दुश्वारियां हयात की सब भूल भाल कर
मुमकिन नहीं है डूबना तेरे खुमार में
ये तितलियों के रक्स ये महकी हुई हवा
लगता है तुम भी साथ हो अबके बहार में
वो जानते हैं खेल में होता है लुत्फ़ क्या
जिनको न कोई फर्क हुआ जीत हार में
अपनी तरफ से भी सदा पड़ताल कीजिये
यूँ ही यकीं करें न किसी इश्तिहार में
'नीरज' किसी के वास्ते खुद को निसार कर
खोया हुआ है किसलिये तू इफ्तिखार में
इफ्तिखार= मान, कीर्ति, विशिष्ठता, ख्य