आशाओँ से काव्य बनाकर
तरुण अक्श को और सजाकर,
मन मेँ सजल चेतना लेकर,
मिलना मुझसे प्रेम कुँभ भर॥
भूल अगर मैँ जाता हुँ,
त्रेता की मर्यादा को,
मुझको फिर से राह दिखाना,
सदभावोँ का दिया जलाकर॥
नवविचार उदगार भरो युँ,
अविरल मँथर गति से आकर,
छा जाऊ मानस स्मृति पर,
नेक नई उपमा मैँ बन कर॥
नई कोँपले निकल रही है,
बन नव विहान श्रृँगार करो,
करुणा के बादल बन बरसो,
हर मानस ''विह्वल'' मन पर॥
मिलना मुझसे प्रेम कुँभ भर॥
तरुण अक्श को और सजाकर,
मन मेँ सजल चेतना लेकर,
मिलना मुझसे प्रेम कुँभ भर॥
भूल अगर मैँ जाता हुँ,
त्रेता की मर्यादा को,
मुझको फिर से राह दिखाना,
सदभावोँ का दिया जलाकर॥
नवविचार उदगार भरो युँ,
अविरल मँथर गति से आकर,
छा जाऊ मानस स्मृति पर,
नेक नई उपमा मैँ बन कर॥
नई कोँपले निकल रही है,
बन नव विहान श्रृँगार करो,
करुणा के बादल बन बरसो,
हर मानस ''विह्वल'' मन पर॥
मिलना मुझसे प्रेम कुँभ भर॥