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रविवार, 23 मई 2010

हकीकत .....ग़ज़ल ......कवि दीपक शर्मा

मैं भी चाहता हूँ की हुस्न पे ग़ज़लें लिखूँ

मैं भी चाहता हूँ की इश्क के नगमें गाऊं

अपने ख्वाबों में में उतारूँ एक हसीं पैकर

सुखन को अपने मरमरी लफ्जों से सजाऊँ ।

लेकिन भूख के मारे, ज़र्द बेबस चेहरों पे
निगाह टिकती है तो जोश काफूर हो जाता है
हर तरफ हकीकत में क्या तसव्वुर में 
फकत रोटी का है सवाल उभर कर आता है ।
ख़्याल आता है जेहन में उन दरवाजों का
शर्म से जिनमें छिपे हैं जवान बदन कितने 
जिनके तन को ढके हैं हाथ भर की कतरन
जिनके सीने में दफन हैं , अरमान कितने 
जिनकी डोली नहीं उठी इस खातिर क्योंकि
उनके माँ-बाप ने शराफत की कमाई है
चूल्हा एक बार ही जला हो घर में लेकिन 
मेहनत की खायी है , मेहनत की खिलाई है । 
नज़र में घुमती है शक्ल उन मासूमों की
ज़िन्दगी जिनकी अँधेरा , निगाह समंदर है ,
वीरान साँसे , पीप से भरी -धंसी आँखे
फाकों का पेट में चलता हुआ खंज़र है ।
माँ की छाती से चिपकने की उम्र है जिनकी
हाथ फैलाये वाही राहों पे नज़र आते हैं ।
शोभित जिन हाथों में होनी थी कलमें 
हाथ वही बोझ उठाते नज़र आते हैं ॥ 
राह में घूमते बेरोजगार नोजवानों को
देखता हूँ तो कलेजा मुह चीख उठता है
जिन्द्के दम से कल रोशन जहाँ होना था
उन्हीं के सामने काला धुआं सा उठता है ।
फ़िर कहो किस तरह हुस्न के नगमें गाऊं
फ़िर कहो किस तरह इश्क ग़ज़लें लिखूं
फ़िर कहो किस तरह अपने सुखन में
मरमरी लफ्जों के वास्ते जगह रखूं ॥
आज संसार में गम एक नहीं हजारों हैं
आदमी हर दुःख पे तो आंसू नहीं बहा सकता ।
लेकिन सच है की भूखे होंठ हँसेंगे सिर्फ़ रोटी से
मीठे अल्फाजों से कोई मन बहला नही सकता ।
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--प्रेम काव्य--प्रेम परक अनुपम काव्य संग्रह

(---पुस्तक --प्रेम काव्य , रचनाकार- डा श्याम गुप्त, प्रकाशक-- प्रतिष्ठा साहित्यिक व सांस्कृतिक संस्था, आलम बाग़ , लखनऊ , समीक्षक --श्री विनोद चन्द्र पाण्डेय 'विनोद' IAS , पूर्व निदेशक, हिन्दी संस्थान ,लखनऊ, उ. प्र.)

  उत्तर रेलवे चिकित्सालय लखनऊ में वरिष्ठ चिकित्सा अधीक्षक पद से सेवा-निवृत्त डा श्याम गुप्त हिन्दी के लब्ध-प्रतिष्ठित साहित्यकार हैं | विशेष रूप से काव्य-विधा में उनका महत्वपूर्ण योगदान रेखांकित करने योग्य है | उनकी अनेक काव्य कृतियों का प्रकाशन हो चुका है | इसी श्रृंखला में 'प्रेम काव्य' की प्रस्तुति स्वागत योग्य है |
  मानव जीवन में प्रेम का अत्यधिक महत्त्व है | प्रेम जहां मानवता को एक सूत्र में आबद्ध करता है वहीं जन जन को प्रेरणा प्रदान करता है | प्रेम के अनेक रूपों का मानव मन पर अलग-अलग प्रभाव परिलक्षित होता है | संयोग और वियोग -प्रेम के दो प्रमुख पक्ष हैं | प्रेम की अनेक स्थितियां भी मानव को प्रभावित करतीं हैं , जिससे सुख-दुःख, ईर्ष्या-वेदना,प्रतिस्पर्धा आदि भावों की अनुभूति मानव मन को होती है | प्रेम काव्य में कविवर डा श्याम गुप्त द्वारा रचित प्रेमाधारित गीतों और कविताओं का संग्रह किया गया है | इसमे प्रेम के विविध रूप दृष्टव्य हैं | रचना वस्तुतः गीति विधा महाकाव्य है |
  प्रेम काव्य के अंतर्गत स्वयं कवि ने 'प्रेम काव्य' के रचना विधान के सम्बन्ध में युक्तिसंगत उदगार इस प्रकार अभिव्यक्त किये हैं--"सृष्टि,जीवन, जगत,सत्य, अहिंसा, दर्शन , धर, अध्यात्म , आत्म तत्त्व, अमृतत्व, ईश्वर, ब्रह्म सब प्रेम के ही रूप हैं | आदि इच्छा, ईषत इच्छा, -परमात्मा का आदि प्रेम भाव ही है जो चराचर की उत्पत्ति का कारण-मूल है उसी प्रेम को नमन ही प्रेम की पराकाष्ठा है , पराकाष्ठा स्वयं प्रेम है | उसी प्रेम के प्रेम में नत होकर, रत होकर ही इस 'प्रेम काव्य' की रचना होसकी है जो ईश्वर के मानव के प्रति प्रेम के विना संभव नहीं है |" कवि के इस कथन की यथार्थता 'प्रेम काव्य' कृति स्वयं प्रमाणित करती है |  
  प्रेम काव्य, जिसे गीति -विधा महाकाव्य की संज्ञा दी गयी है , में एकादश सुमनान्जलियाँ हैं जिनके शीर्षकों को अलग अलग नामों में अभिहित किया गया है | इस महाकाव्य का नायक कोई मूर्त व्यक्तित्व नहीं है अपितु मनोभाव " प्रेम " ही नायकत्व की भूमिका का निर्वाह करता है |
  मंगलाचरण से महाकाव्य के शुभारम्भ के नियम का अनुपालन भी कवि द्वारा किया गया है| भाव पक्ष पुष्ट और सबल है | कावी-कृति भाव संपदा से समृद्ध व सुसंपन्न है | यथार्थ , दर्शन, एवं 
अध्यात्म की त्रिवेणी प्रवाहित होने से रचना स्वयमेव उदात्त और उत्कृष्ट होगई है | कविवर श्याम गुप्त ने प्रेम के समस्त पक्षों का गहन अध्ययन, अनुशीलन एवं अनुभव किया है; अतः अनुभूति की यथार्थता और अभिव्यक्ति की कुशलता यत्र तत्र सर्वत्र दृष्टिगोचर होती है | असार संसार में रचनाकार ने प्रेम को ही सर्व सुख का सार स्वीकार किया है---
  " इस संसार असार में , श्याम प्रेम ही सार |
  प्रेम करे दोनों मिलें , ज्ञान और संसार || "  
कवि ने प्रेम को साकार मोक्ष माना है -----"प्रेम सभी से कीजिये ,सकल शास्त्र का सार |
  ब्रह्मानंद मिले उसे , श्याम' मोक्ष साकार || "
  प्रेम काव्य की भाषा परिष्कृत , प्रांजल, परिनिष्ठित एवं संस्कृत- निष्ठ है | पाठकों को भावानुकूल श्रेष्ठ भाषा अवश्य ही प्रभावित करेगी और प्रेरित करेगी | कवि की वर्णन कुशलता भी उल्लेखनीय है | प्रकृति और वातावरण का चित्रण मनोरम है | बसंत, ग्रीष्म, पावस, शरद, हेमंत और शिशिर ऋतुओं का वर्णन बड़े मनोयोग से किया गया है | प्रकृति और पुरुष का तादाम्य भी ऋतु- वर्णन की प्रमुख विशेषता है |
  ' प्रेम काव्य' का सृजन विविध छंदों में किया गया है | अलग अलग मात्राओं के अलग अलग छंदों का चयन , कवि के छंद-ज्ञान का परिचायक है | गुप्तजी छंदोबद्ध कविता के सशक्त हस्ताक्षर हैं |
अतः उनके छंद प्रवाह- पूर्ण एवं गति यति युक्त हैं |
  काव्य कृति में प्रेम के मूल तत्व के निरूपण के कारण श्रृंगार रस की प्रधानता है , किन्तु वात्सल्य,करुणा एवं शांत रस का आभास और परिपाक भी दृष्टव्य है |यत्र तत्र अलंकारों की छटा काव्य को कमनीयता प्रदान करती है | मुख्य रूप से अनुप्रास, उपमा,उत्प्रेक्षा,आदि अलंकारों का प्रयोग अवलोकनीय है|
  प्रेम के महत्त्व को प्रतिपादित करने में कवि को पूर्ण सफलता प्राप्त हुई है | इसप्रकार उद्देश्य की दृष्टि से भी यह गीति विधा महाकाव्य " प्रेम काव्य " अपनी सार्थकता सिद्ध करता है |