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मंगलवार, 21 सितंबर 2010

गीतकार अवनीश सिंह चौहान हिंदी दिवस पर सम्मानित



मुरादाबाद. हिंदी दिवस की पूर्व संध्या पर दिनांक 13-9-2010 को साहित्यिक संस्था ‘अक्षरा’ और ‘हिंदी साहित्य संगम’ सहित महानगर की छः संस्थाओं के संयुक्त तत्वाधान में स्थानीय गायत्री प्रज्ञा पीठ के सभागार में सम्मान समारोह, विचार गोष्ठी एवं काव्य संध्या का आयोजन किया गया. कार्यक्रम का शुभारम्भ कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ साहित्यकार नवगीत कवि श्री माहेश्वर तिवारी, मुख्य अतिथि हिन्दू महाविद्यालय के विभागाध्यक्ष डॉ रामानंद शर्मा एवं विशिष्ट अतिथि बहजोई इंटर कालेज के पूर्व प्रधानाचार्य श्री राजेश्वर प्रसाद गहोई ने माँ सरस्वती के चित्र के सम्मुख दीप प्रज्वलन एवं माल्यार्पण से किया. तत्पश्चात श्री राम सिंह ‘निशंक’ द्वारा सरस्वती वंदना प्रस्तुत की गयी. कार्यक्रम का सञ्चालन श्री योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’ ने किया.

इस अवसर पर उपरोक्त सभी संस्थाओं की ओर से युवा गीतकार श्री अवनीश सिंह चौहान को उनकी साहित्यिक उपलब्धियों तथा हिंदी के प्रति योगदान के लिए ‘हिंदी साहित्य मर्मज्ञ सम्मान’ से सम्मानित किया गया. उन्हें सम्मान स्वरुप अंग वस्त्र, श्रीफल नारियल, सम्मान पत्र तथा प्रतीक चिन्ह भेंट किया गया. श्री अवनीश जी का साहित्यिक परिचय प्रस्तुत करते हुए श्री योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’ ने कहा कि “अवनीश जी के गीत नवगीत की यात्रा के पथिक तो हैं ही साथ ही अपनी सशक्त रचनाशीलता के प्रस्फुटन को बेहद मजबूती के साथ प्रमाणित करते हैं. गीतों के शिल्प, भाव, कथ्य और सन्दर्भ में विविधिता, नयापन व पैनापन ही उनके गीतों की विशिष्टता है.” वरिष्ठ नवगीत कवि श्री माहेश्वर तिवारी ने अवनीश जी के रचनाकर्म के सन्दर्भ में कहा कि “अवनीश जी के गीत जमीनी सच्चाई को कडुवाहट के साथ उजागर करते हैं तभी तो उनके गीतों में कही हुई बात आम आदमी को अपनी ही पीड़ा का गायन लगता है. उनके गीतों में बिम्ब पूर्ववर्ती कविता के समान अलंकृत अथवा रूढ़ नहीं हैं बल्कि छंद प्रयोग का वैविध्य और नवता दोनों हैं; यही कारण है कि अवनीश जी की रचनाधर्मिता उजले भविष्य का संकेत देती है.”

मुख्य अतिथि डॉ रामानंद शर्मा ने हिंदी दिवस के सन्दर्भ में कहा कि “हर वर्ष हिन्दी दिवस पर कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं, बड़े-बड़े भाषण दिए जाते हैं; कुछ नहीं होता है बाद में. हिंदी समृद्ध भाषा है, जरूरत इस बात की है कि हम अन्य भारतीय भाषाओँ को साथ लेकर हिंदी की लड़ाई लड़ें.” वरिष्ठ कवि श्री राजेंद्र मोहन शर्मा ‘श्रंग’ ने इस अवसर पर कहा कि “युवा रचनाकार अवनीश जी ने अल्प समय में ही अपनी विलक्षण रचनाधर्मिता के माध्यम से अपना स्थान हिंदी साहित्य जगत में बनाया है, हिंदी में गीत विधा पर केन्द्रित इंटरनेट पत्रिका ‘गीत्पहल’ का निर्माण अवनीश जी की एक और विशिष्ट साहित्यिक उपलब्धि है.” विशिष्ट अतिथि श्री राजेश्वर प्रसाद गहोई ने कहा कि “हिंदी के उत्थान के लिए जरूरी है कि हिंदी की पुस्तकों के पढने की प्रवृत्ति हमें अपने बच्चों में डालनी चाहिए.”

इसके पश्चात आयोजित काव्य संध्या में माहेश्वर तिवारी, रामदत्त द्विवेदी, अवनीश सिंह चौहान, योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’, राजेंद्र मोहन शर्मा 'श्रृंग', पुष्पेन्द्र वर्णवाल, ओम आचार्य, विकास मुरादाबादी, योगन्द्र पाल सिंह विश्नोई, डॉ मीना नकवी, जितेंद्र जोली, राम सिंह ‘निशंक’, अशोक विश्नोई, अतुल जोहरी, विवेक निर्मल, कृष्ण कुमार ‘नाज़’, डॉ प्रेमवती उपाध्याय, यशपाल खामोश, शिवअवतार सरस आदि कवियों ने रचनापाठ किया .

बचपन

चूल्हे ‍की आग से निकलते धुएँ से
माँ की आँखों से आँसू बहता हुआ
गाल से गले तक फिसलता चला जाता है
मैं बार बार
चिल्लाता हूँ
माँ खाना कहाँ हैं ...
माँ आँचल से मुंह पोंछते हुए
दुलार से कहती है
ला रही हूँ बेटा
खाने में कुछ पल देर होते ही
मैं रूठ जाता हूँ
माँ चुचकार कर
दुलारकर अपने हाथों से
रोटी खिलाती है
फिर भी मैं मुंह दूसरी तरफ़
किए हुए रोटी खा लेता हूँ ,
माँ प्यार से देर यूँ ही
खाना खिलाती है और मुझे मानती है
मैं माँ को देखकर खुश होता हूँ
और भाग जाता हूँ
घर में छिपने के लिए ....
माँ कुछ देर मुझे इधर उधर
खोजती है
और बक्से के पीछे से ढूंढ लेती है
मैं खुद को हारा महसूस करता हूँ
फिर माँ भी छिपती है
जिसे ढूंढकर खुश होता हूँ
..यूँ ही माँ के साथ बीता बचपन