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शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2010

गीत तुम्हारे मैंने गाये--------[अगीत]-------डाo श्याम गुप्त

गीत तुम्हारे मैंने गाये,
अश्रु नयन में भर-भर आये,
याद तुम्हारी घिर-घिर आई;
गीत नहीं बन पाये मेरे।
अब तो तेरी ही सरगम पर,
मेरे गीत ढला करते हैं;
मेरे ही रस,छंद,भाव सब ,
मुझसे ही हो गये पराये।

बहुत दिन हुए ........ [कविता]--------------रंजना (रंजू ) भाटिया

एक लम्हा दिल फिर से
उन गलियों में चाहता है घूमना
जहाँ धूल से अटे ....
बिन बात के खिलखिलाते हुए
कई बरस बिताये थे हमने ..
बहुत दिन हुए ...........
फिर से हंसी की बरसात का
बेमौसम वो सावन नहीं देखा ...

बनानी है एक
कश्ती
कॉपी के पिछले पन्ने से,
और पुराने अखबार के टुकडों से..
जिन्हें बरसात के पानी में,
किसी का नाम लिख कर..
बहा दिया करते थे ...
बहुत दिन हुए .....
गलियों में
छपाक करते हुए
दिल ने वो भीगना नहीं देखा .....

एक बार फिर से बनानी है..
टूटी हुई चूड़ियों की वो लड़ियाँ,

धूमती हुई वह गोल फिरकियाँ,
और रंगने हैं होंठ फिर..
रंगीन बर्फ के गोलों...
और गाल अपने..
गुलाबी बुढ़िया के बालों से,

जिनको देखते ही...
मन मचल मचल जाता था
बहुत दिन हुए ..
यूँ बचपने को .....
फिर से जी के नहीं देखा....

और एक बार मिलना है
उन कपड़ों की गुड़िया से..

जिनको ब्याह दिया था..
सामने वाली खिड़की के गुड्डे से
बहुत दिन हुए ..
किसी से यूँ मिल कर
दिल ने बतियाना नहीं देखा ..

बस ,एक ख़त लिखना है मुझे
उन बीते हुए लम्हों के नाम
उन्हें वापस लाने के लिए
बहुत दिन हुए ..
यूँ दिल ने
पुराने लम्हों को जी के नहीं देखा ....