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शनिवार, 14 नवंबर 2009

जब वतन छोड़ा……[गजल]- मोहम्मद ताहिर काज़मी

जब वतन छोड़ा, सभी अपने पराए हो गए
आंधी कुछ ऐसी चली नक़्शे क़दम भी खो गए



खो गई वो सौंधी सौंधी देश की मिट्टी कहां ?
वो शबे-महताब दरिया के किनारे खो गए



बचपना भी याद है जब माँ सुलाती प्यार से
आज सपनों में उसी की गोद में हम सो गए



दोस्त लड़ते जब कभी तो फिर मनाते प्यार से
आज क्यूं उन के बिना ये चश्म पुरनम हो गए!



किस क़दर तारीक है अपना जहाँ उन के बिना
दर्द फ़ुरक़त का लिए हम दिल ही दिल में रो गए



था मेरा प्यारा घरौंदा, ताज से कुछ कम नहीं
गिरती दीवारों में यादों के ख़ज़ाने खो गए



हर तरफ़ ही शोर है, ये महफ़िले-शेरो-सुख़न
अजनबी इस भीड़ में फिर भी अकेले हो गए


प्लेटफार्म पर भटकता बचपन-------------[मिथिलेश दुबे]


उसके पापा की साइकिल मरम्मत की दुकान थी, आमदनी ज्यादा नहीं थी, सो पापा ने उसे बनारसी साङियों की एक फैक्टरी मे काम करने भेजा ,तब वह महज ८-९ साल का था।छोटा होने की वजह से हाथो की पकङ मजबूत नही थी, नतीजन साङी मे दाग छूट गया , इस बात पर गुस्साये ठेकेदार ने उस की पिटाई की। वह पापा के पास जा पहुचा ,पर पापा ने उस की बात नही सूनि और उन्होने भी उस की पिटाई की, फिर उसे जबरजस्ती उसी ठेकेदार के पास पहुचा दिया गया ,ठेकेदार ने उसे दोबारा पिटा ,वह फिर भागा पर अब वह घर नही गया वह सिधा जा पहुचा नई दिल्ली रेलवे स्टेशन । यहाँ से शुरु होती है उसके आगे की कहानी जब वह स्टेशन पहुचा तब वह वहा सो गया ,जब आँखे खूंली तब उसे भुख लगी थी और सवेरा हो चूका था। ,पेट मे चुहे दैङ रहे थे खाने के लिये पास मे कुछ भी नही था और न ही कुछ खरीद पाने के लिये पैसे, वह असहाय भुख से तङप रहा था,। अचानक उसकी नजर कुछ ऐसे बच्चो पे पङी जो कूड़े के डब्बे से कुछ निकालने की कोशिश मे लगे थे ,वह वहाँ गया तो उसने देखा कि वे बच्चे कूड़े से कुछ खाने की वस्तुवे निकाल रहे थे , तब वह वँहा गया और वह भी उन बच्चो के गिरोह मे शामिल हो गया और उसने भी उन जूठे खाने से अपने पेट की आग को बुझाई ।

वह उन बच्चो के गिरोह मे शामिल हुआ जो पल्टेफार्म पर भीख मांगने से लेकर पानी के डब्बो को बेचना, नशे की चिजो को बेचना ,प्लेटफार्म पे पोछा लगाने आदि कई ऐसे काम करते जो की प्रशासन की नजर मे गैर कानुनी हैं। ये कहानी किसी एक विषेश की नही है हम और आप प्रतिदीन इन बच्चो को देखते है फिर कुछ सोचते और फिर भूल जाते है। आपको जान कर हैरानी होगी की इनमे से ज्यातर बच्चे ऐसे है जो नशे की गिरफ्त मे बुरी तरह से जकङे जा चुके है। नशे के व्यापारी अपने थोङे से फायदे के लिये उन बच्चो के भविष्य के साथ खेल रहे है जिन्हे भारत का भविष्य कहा जा रहा है।कानून है कि १८ साल से कम उम्र का बच्चा न तो नशे का सेवन कर सकता है और न ही उसे बेच सकता है , लेकीन हमारा प्रशासन है की जिसे इसकी खबर ही नही है । बाल अधिकारो से जुङी तमाम गैरसरकारी संस्था को चाहिये की नशे की ओर इनके बढते हुये कदम को रोका जाये और इनके कदम को भारत के उज्वल भविष्य की ओर अग्रसर किया जाये।