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बुधवार, 30 जून 2010

'आवारागर्द' है....................... पंकज तिवारी


ये हँसी नहीं मेरे दिल का दर्द है।
हर एक साँस मेरी आज सर्द है।।

छुपाया है हर एक आँसू आँखों में,
देख पाये ज़माना बड़ा बेदर्द है।

है साफ आइने सा आज भी दिल,
कतरा तलक जम सकी गर्द है।

बदसुलूकी की ये सजा है मिली,
दिल है गमगीन और चेहरा ज़र्द है।

साफ समझे याकि दिल का काला,
हर एक राज़ तेरे सामने बेपर्द है।

कभी समझाया जो वाइज़ बनकर,
ईनाम में नाम दिया 'आवारागर्द' है।

गुरुवार, 24 जून 2010

बेटी को भी जन्मने दो -- कविता

कविता
बेटी को भी जन्मने दो
डॉ0 कुमारेन्द्र सिंह सेंगर

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मचल रही जो दिल में धड़कन

उसको जीवन पाने दो,
होठों की कोमल मुस्कानें
जीवन में खिल जाने दो।

नन्हा सा मासूम सा कोमल
गुलशन में है फूल खिला,
पल्लवित, पुष्पित होकर उसको
जहाँ सुगन्धित करने दो।

खेले, कूदे, झूमे, नाचे
वह भी घर के आँगन में,
चितवन की चंचलता में
स्वर्णिम सपने सजने दो।

मानो उसको बेटों जैसा
आखिर वह भी बेटी है,
आने वाली मधुरिम सृष्टि
उसके आँचल में पलने दो।

धोखा है यह वंश-वृद्धि का
जो बेटों से चलनी है,
वंश-वृद्धि के ही धोखे में
बेटी को भी जन्मने दो।

प्‍यार.......................... प्रमेन्‍द्र

राहो मे पलके बिछा कर
तेरा इंतजार कर रहा हूँ।
अपनी चाहत को तेरे दिल मे बसा कर
अपना इश्क-ए-इज़हार कर रहा हूँ।

चाहत को अपनी चाह कर भी,
इज़हार नही कर पा रहा हूँ।
तेरी चाहत मे दिल मे दर्द लेकर
अपने को दिल को दर्द दे रहा हूं।

मै तुम्‍हे देखता हूँ
देखता ही रह जाता हूँ।
मै जहाँ जाता हूँ
सिर्फ तुझे ही पाता हूँ।।

मै अपने प्‍यार को खुद मार रहा हूँ ,
चाह कर भी कुछ नही कर पा रहा हूँ।
काश कोई करिश्‍मा हो जाये,
सारे बंधन तोड़ कर हम एक हो जाये।। - प्रमेन्द्र

बुधवार, 16 जून 2010

कैसा था वो पहला प्‍यार ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,नीशू तिवारी

बहुत दिन नहीं हुआ जॉब करते हुए .....पर अच्छा लगता है खुद को व्यस्त रखना........शाम की कालिमा अब सूरज की लालिमा को कम कर रही थी ......मैं चुप चाप तकिये में मुह धसाए बहार उड़ रही धुल में अपनी मन चाही आकृति बना कर ( कल्पनाओं में ) खुश हो रहा था .........कभी प्रिया का हंसता चेहरा नजर आता .........तो दूसरे पल बदलते हवा के झोंकों के साथ आँखें नयी तस्वीर उतार लेती .......... बिलकुल वैसी ही .....जैसे वो मिलने पर( शर्माती थी ) करती थी.............अचानक आज इन यादों ने मेरी साँसों की रफ्तार को तेज़ कर दिया .........करवट बदलते हुए आखिरी मुलाकात के करीब न जाने क्यूँ चला गया ...........
मैं पागल हूँ , और आलसी भी वो हमेशा कहा करती थी ....जिसे मै हंस कर मान लेता था .....(सच कहूँ तो आलसी हूँ भी )........ .....दिल्ली में दो साल कैसे बीते ? ....पता ही न चला ..... हम साथ ही पत्रकारिता में दाखिल हुए थे ........और साथ ही पढाई पूरी की ..........पहली बार हम दोनों कालेज के साक्षात्‍कार से पहले मिले थे .......वह बहुत घबराई सी लग रही थी .......मैंने ही बात के सिलसिले को आगे बढाया था .........बातो से पता चला की वह भी इलाहाबाद से पढ़ कर आई है ...तब से ही अपनापन नजर आया था उसको देखकर ........साक्षात्‍कार  का परिणाम आने पर हम दोनों का चयन हुआ था .........ये मेरे लिए सब से बड़ी ख़ुशी की बात थी ...क्यूंकि मैंने जो तैयारी की थी उससे मैं खुश  न था ...........पर मेरा भी चयन हो ही गया था .........कुछ दिनों के बाद क्लास शुरू हो गयी ......नए नए दोस्त बने .....समय अच्छे से गुजरता ........पर जब तक प्रिय से कुछ देर न बात करता .......तो कुछ भी अच्छा न लगता .....सुबह से शाम तक मैं प्रिया के पास और प्रिया मेरे पास ही होती ......यानि आसपास ही क्लास में बैठते ....दोपहर का नाश्ता और शाम की चाय साथ पीने के बाद हम दोनों अपने अपने रूम के लिए निकलते ......रूम पर पहुच कर फिर फ़ोन से बहुत सारी बातें होती ............इसी बातों से न जाने कब प्यार हो गया पता ही न चला ..........वैसे प्रिया तो शायद ही कभी बोलती .........पर हाँ मैंने ही उसको प्रपोज किया था .......कोई उत्तर नहीं दिया था उसने ..........मैं  डर गया था की शायद अब वह बात न करे......लेकिन नहीं उसका स्वभाव वैसे ही सीधा साधा रहा ..जैसे  वह रहती थी ..... मेरे लिए ख़ुशी की बात थी .......मैंने खुद से ही हाँ मान लिया था .....क्यूंकि वह चुप जो थी .......कभी लड़ते कभी झगड़ते .......रूठते मानते .....अब उस दौर में हम दोनों आ गए थे की अब आगे की जिंदगी को चुनना था ........संघर्ष और सफलता के बीच प्यार को लेकर चलना था ..........प्रिया ने आखरी सेमेस्टर का एग्जाम देने के बाद यूँ ही कहा था ..........मिस्टर आलसी .......अब आपको सारा काम खुद से करना होगा ......हो सकता है रोज फ़ोन पर बात भी न हो पाए ......और हाँ मैं घर जा रही हूँ ......शायद पापा अब न आने दें .........वहीँ कोई जॉब देखूंगी ........ मैं चुपचाप उसकी बातें सुन रहा था .......वो मेरी तरफ नहीं देख रही थी पर बात मुझसे ही कह रही थी .......आज पहली बार दो साल में उसकी आँखों में आसूं देखा था ............फिर जल्दी से आंसू पोछते हुए कहा था ....मिस्टर उल्लू .....नहाते भी रहना ...वरना मुझे आना होगा .........मैंने सर हिलाकर सहमती दे दी थी ..........वो कल सुबह जाएगी ........अब कैसे रहूँगा  ?........कुछ समझ न आया था ......रात भर नींद न आयी ..और प्रिया को भी परेशान न करना चाहता था .........क्यूंकि अगले दिन उसकी ट्रेन थी .........सुबह मिलने की बात हुई थी .......मैं अपना वादा निभाते हुए रेलवे स्‍टेशन तक छोड़ने गया था ...........ट्रेन जाने तक उसको देखता ही रहा था ............हाँ कुछ महीने बाद उसका फ़ोन आया था ..........ठीक है वह ..........

रविवार, 13 जून 2010

अख़बार के बण्डल में देखता हूँ ज़माने का सच ......... ..नीशू तिवारी

भारी बोझल आँखें अधखुली खिड़की से झांकती हैं..........
बंद हो  जाती है पलकें  खुद ब खुद...
बंद आँखें होते हुए भी मैं पहुच जाता हूँ बालकनी तक
उठाता हूँ अखबार का बण्डल
अलसाये बदन में हवा का झोंका सनसनी पैदा करता   है
मैं बेमन खोलता हूँ समाज के दर्पण को 
दौडाता हूँ सरासर पूरे पन्ने पर नज़र 
पढता हूँ नाबालिग लड़की से दुराचार की खबर
दहेज़ के लिए विवाहिता के जलाने का समाचार 
फिर दुखी मन बढ़ जाता  हूँ  अगले पन्ने पर
जाती हैं नज़र क़र्ज़ से डूबे  किसानो को आत्महत्या पर 
और
राजनेता के द्वारा किये घोटाले पर 
सोचता हूँ की काश न होता ये पन्नों का पुलिंदा 
और 
न आती आँखों के सामने ये ख़बरें
जिसको पढ़कर मेरा मन विचलित होता है
आखिर देश के विकास ये लोग कहाँ और कैसे पीछे रह गये ?
क्यूँ नहीं देता कोई इन पर ध्यान ?
इन्ही विचारों से परेशान होता हूँ
रोज ही मैं .............. 
 

ग़ज़ल............- दिल में ऐसे उतर गया कोई..............मनोशी जी

दोस्त बन कर मुकर गया कोई  
अपने दिल ही से डर गया कोई

आँख में अब तलक है परछाईं
दिल में ऐसे उतर गया कोई

सबकी ख़्वाहिश को रख के ज़िंदा फिर
ख़ामुशी से लो मर गया कोई

जो भी लौटा तबाह ही लौटा
फिर से लेकिन उधर गया कोई

"दोस्त" कैसे बदल गया देखो
मोजज़ा ये भी कर गया कोई

शनिवार, 12 जून 2010

अस्तित्व....................(कविता)...................... सुमन 'मीत'

दी मैनें दस्तक जब इस जहाँ में

कई ख्वाइशें पलती थी मन के गावं में
सोचा था कुछ करके जाऊंगी

जहाँ को कुछ बनकर दिखलाऊंगी
बचपन बदला जवानी ने ली अंगड़ाई

जिन्दगी ने तब अपनी तस्वीर दिखाई

मन पर पड़ने लगी अब बेड़ियां

रिश्तों में होने लगी अठखेलियां

जुड़ गए कुछ नव बन्धन

मन करता रहा स्पन्दन

बनी पत्नि बहू और माँ

अर्पित कर दिया अपना जहाँ 

भूली अपने अस्तित्व की चाह

कर्तव्य की पकड़ ली राह

रिश्तों की ये भूल भूलैया

बनती रही सबकी खेवैया

फिसलता रहा वक्त का पैमाना

न रुका कोई चलता रहा जमाना 

चलती रही जिन्दगी नए पग

पकने लगी स्याही केशों की अब

हर रिश्ते में आ गई है दूरी

जीना बन गया है मजबूरी

भूले बच्चे भूल गई दुनियां

अब मैं हूँ और मन की गलियां
काश मैनें खुद से भी रिश्ता निभाया होता
रिश्तों संग अपना ‘अस्तित्व’ भी बचाया होता................. 
   

शुक्रवार, 11 जून 2010

राष्ट्रवादी.................श्यामल सुमन

तनिक बतायें नेताजी, राष्ट्रवादियों के गुण खासा।
उत्तर सुनकर दंग हुआ और छायी घोर निराशा।।

नारा देकर गाँधीवाद का, सत्य-अहिंसा क झुठलाना।
एक है ईश्वर ऐसा कहकर, यथासाध्य दंगा करवाना।
जाति प्रांत भाषा की खातिर, नये नये झगड़े लगवाना।
बात बनाकर अमन-चैन की, शांति-दूत का रूप बनाना।
खबरों में छाये रहने की, हो उत्कट अभिलाषा।
राष्ट्रवादियों के गुण खासा।।

किसी तरह धन संचित करना, लक्ष्य हृदय में हरदम इतना।
धन-पद की तो लूट मची है, लूट सको तुम लूटो उतना।
सुर नर मुनि सबकी यही रीति, स्वारथ लाई करहिं सब प्रीति।
तुलसी भी ऐसा ही कह गए और तर्क सिखाऊँ कितना।।
पहले "मैं" हूँ राष्ट्र "बाद" में ऐसी रहे पिपासा।
राष्ट्रवादियों के गुण खासा।।

आरक्षण के अन्दर आरक्षण, आपस में भेद बढ़ाना है।
फूट डालकर राज करो, यह नुस्खा बहुत पुराना है।
गिरगिट जैसे रंग बदलना, निज-भाषण का अर्थ बदलना।
घड़ियाली आंसू दिखलाकर, सबको मूर्ख बनाना है।
हार जाओ पर सुमन हार की कभी न छूटे आशा।
राष्ट्रवादियों के गुण खासा।।

"सूत्र" एक है "वाद" हजारों, टिका हुआ है भारत में।
राष्ट्रवाद तो बुरी तरह से, फँस गया निजी सियासत में।।

गुरुवार, 10 जून 2010

दोस्त की बेटी के जन्म पर एक कविता -------- कवि दीपक शर्मा

सेमल जैसी काया लेकर देखो चंदा आया रे 
रौशन जगमग मेरे अंगना देखो उतरा साया रे 
पूनो वाली ,रात अमावास जैसी लगती दुनिया को  
चांदनी मेरे द्वारे आई ,छाया जग मे उजियारा रे .
 
दूध कटोरे माफिक आंखिया,बिन बोले कह देती बतिया 
रात बने दिन जगते जगते ,दिन भये सोते सोते रतिया
मुंह से दूध की लार गिरे तो मां ने हाथ फैलाया रे 
चांदनी मेरे द्वारे आई ,छाया जग मे उजियारा रे .

जीवन {कविता} सन्तोष कुमार "प्यासा"

जीवन क्या है ?
सुख का आभाव
या दुःख की छाँव
या के प्रारब्ध के हाँथ की कठपुतली
हर क्षण अपने इशारो
पर नचाती है
किसके हाथ में है
जीवन की डोर ?
**************************
जीवन उसी का है
जो इसे समझ सके
तेरे हांथों में है
तेरे जीवन की डोर
ये नहीं महज
प्रारब्ध का मेल
ये
है
सहज-पर-कठिन खेल
भाग्य की सृष्टि
निज कर्मो से होती है
जीवन तेरे हांथों में
जैसी चाहे वैसी बना
हाँ, जीवन एक खेल है
"प्यासा" हार जीत का शिकवा
मत कर
खेले जा, खेले जा
खेले जा..................................  

बुधवार, 9 जून 2010

काव्य दूत,,,,,,,,,,,,,


  पुस्तक समीक्षा 
 पुस्तक--काव्यदूत ( काव्य सन्ग्रह), रचनाकार--डा श्याम गुप्त , समीक्षक--कवि राम देव लाल "विभोर" , प्रकाशक- सुषमा प्रकाशन, आशियाना, लखनऊ 

काव्यदूत कवि श्याम का,पढ़ा मिला आनंद |

कहीं 'सुगत' दिक्पाल है,कहीं मुक्त है छंद |

अनुभव का आला लिए,अति उत्तम तजवीज़ |
सुकवि श्याम के काव्य में,विविध रंग के बीज |

आस पास के दृश्य को, रचनाओं में ढाल |
श्याम'सलोनी उक्ति कह,सबको करें निहाल |

सरल, खडी- बोली मधुर, उत्तम भाव- विभाव |
गतिमय कविता श्याम की,दिल पर करे प्रभाव |

पुस्तक में दो खंड हैं , रचनाएँ हें साठ |
यति गति लय में सभी का,मनमोहक है पाठ |

पीर कहीं, माया कहीं , कहीं सुहाना गीत |
सूनी राहें चल रहे , श्याम सभी के मीत |

अंधियारी रजनी कहीं, दूर क्षितिज के पार |
चंचल धारा है कहीं , गम का कहीं निखार |

छोटी छोटी बात को, कलापूर्ण दे चित्र |
सुकवि 'श्याम अब होगये, काव्य कला के मित्र |

यादों की अल्बम लिए,सरल श्याम के भाव |
दिन दुगुना, निशि चौगुना,बढ़ा रहे अब चाव |

साधुवाद कवि श्याम को , देते आज 'विभोर |
ईश करे, दिन दिन बढे, उनकी रचना डोर

शिक्षा और आधुनिक प्यार ********* सन्तोष कुमार "प्यासा"

आज कल प्यार का भूत युवाओ पर अच्छा खासा चढ़ा हुआ है ! गर्लफ्रेंड और बॉयफ्रेंड बनाने का फैशन सर चढ़ कर बोल रहा है ! जिसे देखो वही इसमें बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले रहा है ! प्यार का खुमार इतना ज्यादा चढ़ चूका है की युवा पीढ़ी ने पढाई को साइड में रख दिया है !प्यार का वास्तविक ज्ञान न होने के कारण आज के अधिकतर युवा अपना भविष्य बर्बाद कर रहे है ! प्यार करना कोई बुरी बात नहीं है ! और न ही अपने से विपरीत लिंग से दोस्ती करना ! बस इरादा दोस्ती को नेक और दागदार बनता है ! किसी से प्यार हो जाने का मतलब ये नहीं होता की हम अपने कैरियर को भूल कर बस उसी में खो जाए ! आज के अधिकतर युवा पढाई को साइड में रखकर घंटो फोन में चिपके रहते है ! जो की सही नहीं है ! सही गलत और अच्छे बुरे का ज्ञान हमें शिक्षा से प्राप्त होता है ! शिष्टाचार से लेकर सुनहरे भविष्य के निर्माण तक की कला हमें शिक्षा से ही मिलती है ! प्यार की उत्पत्ति ज्ञान से हुई है ! एक विवेकवान मनुष्य ही प्यार की वास्तविकता को समझ और निभा सकता है ! हमें शिक्षा को अधिक महत्व देना चाहिए ताकि हम्मे विवेक का संचार हो और हम प्यार की वास्तविकता को समझ सके ! हमें ये कभी भी नहीं सोंचना चाहिए की हमारे दोस्तों के पास गर्लफ्रेंड या बॉयफ्रेंड है और हमारे पास नहीं ! इस प्रकार की सोंच को दिमाग में नहीं लाना चाहिए ! ऐसा सोंचने से हम स्यम में हीन भावना महसूस करने लगते है ! मन पढाई में भी नहीं लगता ! हमें एक बात सदैव यद् रखनी चाहिए की बॉयफ्रेंड या गर्लफ्रेंड जिंदगी की जरूरत नहीं ! और न ही फैशन या शौक ! प्यार होना मात्र एक संयोग और मनुष्य का प्राकृतिक लक्षण है ! विपरीत सेक्स के प्रति आकर्षित होना मनुष्य का प्राकृतिक स्वभाव है ! अगर हम एक बात को गांठ बांध ले की गर्लफ्रेंड और बॉयफ्रेंड बनाने की कोई समय सीमा नहीं है !
लेकिन भविष्य निर्माण के लिए एक समय सीमा निर्धारित है ! यदि हम उससे चूक गए तो जिन्गदी भर पछताने के आलावा और कुछ नहीं बचेगा ! तो हम कुछ हद तक खुद पर काबू प् सकते है ! खूब मस्ती करो, खूब दोस्ती करो ! लेकिन शिक्षा और भविष्य कभी मत भूलो !

मंगलवार, 8 जून 2010

ज़िंदगी..........(श्यामल सुमन).................गजल

आग लग जाये जहाँ में फिर से फट जाये ज़मीं।
मौत हारी है हमेशा ज़िंदगी रुकती नहीं।।

आँधी आये या तूफ़ान बर्फ गिरे या फिर चट्टान।
उत्तरकाशी भुज लातूर सुनामी और पाकिस्तान।।
मौत का ताण्डव रौद्र रूप में फँसी ज़िंदगी अंधकूप में।
लाख झमेले आने पर भी बढ़ी ज़िंदगी छाँव धूप में।।

दहशतों के बीच चलकर खिल उठी है ज़िंदगी।
मौत हारी है हमेशा ज़िंदगी रुकती नहीं।।

कुदरत के इस कहर को देखो और प्रलय की लहर को देखो।
हम विकास के नाम पे पीते धीमा धीमा ज़हर तो देखो।।
प्रकृति को हमने क्यों छेड़ा इस कारण ही मिला थपेड़ा।
नियति नियम को भंग करेंगे रोज़ बढ़ेगा और बखेड़ा।।

लक्ष्य नियति के साथ चलना और सजाना ज़िंदगी।
मौत हारी है हमेशा ज़िंदगी रुकती नहीं।।

युद्धों की एक अलग कहानी बच्चे बूढ़े मरी जवानी।
कुरुक्षेत्र से अब इराक़ तक रक्तपात की शेष निशानी।।
स्वार्थ घना जब जब होता है जीवन मूल्य तभी खोता है।
करुणभाव से मुक्त हृदय भी विपदा में संग संग रोता है।।

साथ मिलकर जब बढ़ेंगे दूर होगी गंदगी।
मौत हारी है हमेशा ज़िंदगी रुकती नहीं।।

जीवन है चलने का नाम रुकने से नहीं बनता काम।
एक की मौत कहीं आ जाये दूजा झंडा लेते थाम।।
हाहाकार से लड़ना होगा किलकारी से भरना होगा।
सुमन चाहिए अगर आपको काँटों बीच गुज़रना होगा।।

प्यार करे मानव मानव को यही करें मिल बंदगी।
मौत हारी है हमेशा ज़िंदगी रुकती नहीं।।

सोमवार, 7 जून 2010

बंद करता हूं जब आंखे............(कविता)...............neeshoo tiwari

बंद करता हूं जब आंखे

सपने आखों में तैर जाते हैं ,

जब याद करता हूँ तुमको 

यादें आंसू बनके निकल जाती हैं ,


ये खेल होता रहता है ,

यूं हर पल , हर दिन ही ,

तुम में ही खोकर मैं ,

पा लेता हूँ खुद को , 

जी लेता हूँ खुद को ,



बंद करता हूँ आंखें तो 

दिखायी देती है तुम्हारी तस्वीर , 

सुनाई देती है तुम्हारी हंसी कानों में,

ऐसे ही तो मिलना होता है तुमसे अब।।



बंद कर आंखें देर तक,

महसूस करता हूँ तुमको ,

और न जाने कब 

चला जाता हूँ नींद के आगोश में ,

तुम्हारे साथ ही ।।

राह {कविता} सन्तोष कुमार "प्यासा"


जब हम मिले
वो दिन एक था
जहाँ हम मिले
वो जगह एक थी
दोनों की बाते
दोनों के विचार एक थे
जहाँ हमें जाना था
वो मंजिल एक थी
मै तो अब भी वहीँ कायम हूँ
पर अब पता नहीं क्यू
तुमने बदल ली अपनी राह.......................... 

शनिवार, 5 जून 2010

मनुष्य प्रकृति और समय {विश्व पर्यावरण दिवस पर एक चिंतन} सन्तोष कुमार "प्यासा"

हर क्षण हर पल इस स्रष्टि में कुछ न कुछ होता रहता है ! "समय" इक पल भी नहीं ठहरता ! समय का चक्र निरंतर घूमता रहता है ! जब मै इस लेख को लिख रहा हूँ, मुझे मै और मेरे विचार ही दिख रहे है ! ऐसा प्रतीत होता है, जैसे की कुछ हो ही नहीं रहा ! हवा शांत है ! सरसों के पीले खेत इस भांति सीधे खड़े है, जैसे किसी ने उन्हें ऐसा करने का आदेश दिया हो ! चिड़ियों की चहचहाहट, प्रात: कालीन समय और ओस की बूंदे, बहुत भली लग रहीं हैं ! सूर्य खुद को बादलों के बीच इस भांति छुपा रहा है, जैसे कोई लज्जावान स्त्री पर पुरुष को देख कर अपना मुंह आँचल में छुपा लेती है ! कोहरे को देख कर, बादलों के प्रथ्वी पर उतर आने का भ्रम हो रहा है ! दिग दिगंत तक शांति और सन्नाटा फैला हुआ है ! एक ऐसा दुर्लभ अनुभव हो रहा है, की अब मेरे विचार और मेरी कलम के सिवा कुछ है ही नहीं ! मानो समय थम सा गया हो! लगता है समय ने अपना नियम तोड़ दिया है ! किन्तु वास्तव में ऐसा नहीं है ! अभी भी स्रष्टि में कहीं न कहीं कुछ न कुछ हो रहा है ! समय अपने नियम पर अटल है ! इस समय जब आप मेरे लेख को पढ़ रहें हैं, उसी क्षण इस प्रथ्वी पर कहीं न कहीं कुछ न कुछ हो रहा है ! किसी के यहाँ खुशियाँ तो किसी के घर पर किसी के म्रत्यु का शोक मनाया जा रहा है ! कोई बीमारी से पीड़ित है, तो किसी को रोग से मुक्ति मिली है ! समय अपना कार्य कर रहा है ! प्रकृति का यह नियम अटूट है ! मनुष्य और प्रकृति का परस्पर घनिष्ट सम्बन्ध है ! "मनुष्य की उत्त्पति प्रकृति की सहायता के लिए तथा प्रकृति का निर्माण मनुष्य की सहायता के लिए हुआ है" ! मनुष्य और प्रकृति एक दूसरे के पूरक हैं ! कहा जाता है की मनुष्य अपने लाभ के लिए कुछ भी कर सकता है, हुआ भी वही ! अपने लाभ हेतु मनुष्य प्रकृति के प्रति अपना कर्तब्य भूल गया ! उसने पेड़ काटने शुरू कर दिए ! मनुष्य ने बड़े बड़े वनों को काट डाला ! उसने पर्वतों को भी नहीं छोड़ा ! कई पहाड़ों को बेध डाला ! मनुष्य ने प्रकृति के साथ विशवास घात किया ! जिससे प्रकृति को बहुत कष्ट हुआ ! वनों में रहने वाले जीव जंतु इधर उधर भटकने लगे, उनका अस्तित्व खतरे में पड़ गया ! कई दुर्लभ जीव जंतु और वनस्पतियों का अस्तित्व ही मिट गया ! इससे प्रक्रति बहुत क्रोधित हो गई ! उसने भी मनुष्य के प्रति अपने कर्तब्य को भुला दिया ! पर्यावरण असंतुलित हो रहा है ! वर्षा का कोई ठिकाना नहीं ! कभी सूखा तो कभी बाढ़, तो कभी लहलहाते फसलों पर ओलों का आक्रमण पता नहीं क्या होने वाला है ! पर्वतों के क्षरण से प्रथ्वी असंतुलित हो गई ! फलस्वरूप भूकंप आने लगे ! वनों के कटने से हवा मानसून को एक जगह टिकने नहीं देती ! ठंडी गर्मी और बरसात का कोई नियम ही नहीं रहा ! गर्मी बढ़ रही है, ओजोन परत का छिद्र दिन ब दिन बढ़ रहा है ! प्रदुषण से वातावरण ग्रसित हो गई है !

हवा विषैली हो गई है ! पानी भी पीने योग्य नहीं रहा ! मृदा में भी मनुष्य ने ज़हर घोल दिया है ! प्रतीत होता है की "क़यामत" की शाम नजदीक है !
लेकिन मनुष्य अभी भी नहीं चेता, उसके लोभ ने उसे अँधा कर रखा है ! वनों की कटाई अभी भी जारी है ! बड़े-बड़े कारखानों से निकलने वाला धुंवा लगातार हवा को विषैला बना रहा है ! कारखानों का केमिकल मिला पानी नदियों के जल को जहरीला बना रहा है ! आखिर क्या होगा ! तरह तरह के राशायानिक खादों का प्रयोग करके मृदा को दूषित किया जा रहा है, जिससे मिटटी की उर्वरा शक्ति दिन ब दिन कम होती जा रही है, जो की फसलों के उत्पादन में कमी का कारण है ! फलस्वरूप महंगाई बढ़ रही है, जिसके परिणाम स्वरूप भ्रस्टाचार और मानवीय हिंसा बढ़ रही है !
एक समय था जब हर तरफ हरियाली ही हरियाली और शुद्ध हवा थी, नदियों का पीने योग्य था, और आज बिलकुल विपरीत है ! "मनुष्य" "प्रकृति" और "समय" ! मनुष्य और प्रकृति के इस लड़ाई का साक्षी "समय" है ! समय अपना कार्य कर रहा है ! इस लड़ाई से "समय" का तो कुछ भी नहीं बिगड़ेगा, किन्तु "मनुष्य" और "प्रक्रति" का पति नहीं क्या होगा ! "समय" ने ऐसी कई घटनाओं को देखा और इतिहास के पन्नो में दफ्न किया है ! "समय" अपना कार्य कर रहा है ! "समय" का चक्र चल रहा है, और सदा चलता रहेगा !

शुक्रवार, 4 जून 2010

गजल...............कवि दीपक शर्मा

लो राज़ की बात आज एक बताते हैं
हम हँस-हँसकर अपने ग़म छुपाते हैं,

तन्हा होते हैं तो रो लेते जी भर कर
सर-ए-महफ़िल आदतन मुस्कुराते हैं.

कोई और होंगे रुतबे के आगे झुकने वाले
हम सिर बस खुदा के दर पर झुकाते हैं

माँ आज फिर तेरे आँचल मे मुझे सोना है
आजा बड़ी हसरत से देख तुझे बुलाते हैं . 

इसे ज़िद समझो या हमारा शौक़ “औ “हुनर
चिराग हम तेज़ हवायों मे ही जलाते है

तुमने महल”औ”मीनार,दौलत कमाई हो बेशक़
पर गैर भी प्यार से मुझको गले लगाते हैं

शराफत हमेशा नज़र झुका कर चलती हैं
हम निगाह मिलाते हैं,नज़रे नहीं मिलाते हैं

ये मुझ पे ऊपर वाले की इनायत हैं “दीपक ”
वो खुद मिट जाते जो मुझ पर नज़र उठाते हैं

गुरुवार, 3 जून 2010

राष्ट्रवादी..............(गजल)......................श्यामल सुमन

तनिक बतायें नेताजी, राष्ट्रवादियों के गुण खासा।
उत्तर सुनकर दंग हुआ और छायी घोर निराशा।।

नारा देकर गाँधीवाद का, सत्य-अहिंसा क झुठलाना।
एक है ईश्वर ऐसा कहकर, यथासाध्य दंगा करवाना।
जाति प्रांत भाषा की खातिर, नये नये झगड़े लगवाना।
बात बनाकर अमन-चैन की, शांति-दूत का रूप बनाना।
खबरों में छाये रहने की, हो उत्कट अभिलाषा।
राष्ट्रवादियों के गुण खासा।।

किसी तरह धन संचित करना, लक्ष्य हृदय में हरदम इतना।
धन-पद की तो लूट मची है, लूट सको तुम लूटो उतना।
सुर नर मुनि सबकी यही रीति, स्वारथ लाई करहिं सब प्रीति।
तुलसी भी ऐसा ही कह गए और तर्क सिखाऊँ कितना।।
पहले "मैं" हूँ राष्ट्र "बाद" में ऐसी रहे पिपासा।
राष्ट्रवादियों के गुण खासा।।

आरक्षण के अन्दर आरक्षण, आपस में भेद बढ़ाना है।
फूट डालकर राज करो, यह नुस्खा बहुत पुराना है।
गिरगिट जैसे रंग बदलना, निज-भाषण का अर्थ बदलना।
घड़ियाली आंसू दिखलाकर, सबको मूर्ख बनाना है।
हार जाओ पर सुमन हार की कभी न छूटे आशा।
राष्ट्रवादियों के गुण खासा।।

"सूत्र" एक है "वाद" हजारों, टिका हुआ है भारत में।
राष्ट्रवाद तो बुरी तरह से, फँस गया निजी सियासत में।।

बुधवार, 2 जून 2010

लोग...................... {कविता}................ सन्तोष कुमार "प्यासा"

आखिर किस सभ्यता का बीज बो रहे हैं लोग


अपनी ही गलतियों पर आज रो रहे हैं लोग

हर तरफ फैली है झूठ और फरेब की आग

फिर भी अंजान बने सो रहे है लोग

दौलत की आरजू में यूं मशगूल हैं सब

झूठी शान के लिए खुद को खो रहे हैं लोग

जाति, धर्म और मजहब के नाम पर

लहू का दाग लहू से धो रहे हैं लोग

ऋषि मुनियों के इस पाक जमीं पर

क्या थे और क्या हो रहे है लोग

मंगलवार, 1 जून 2010

सच हुआ सपना ....(लेख)..........मोनिका गुप्ता


सपने वो नही जो सोते समय देखे जाए ... सपने वो हैं जो हमे सोने ही ना दें ...कुछ ऐसा ही सपना लिए हरियाणा के पानीपत का कनिक गुप्ता अपनी +2 की पढाई के साथ साथ आईआईटी और एआईईईई की पढाई मे जुटा हुआ था. +2 मे तो 89.4% लिए पर असली इंतजार दूसरे रिजल्ट का था और वो दिन भी आ गया जब रिजल्ट आना था. कनिक की खुशी का कोई ठिकाना ही नही रहा जब उसने आईआईटी मे पूरे भारत मे 659 रैंक हासिल की और एआईईईई मे पूरे हरियाणा मे प्रथम आया .

अपनी सफलता का पूरा श्रेय वो भगवान को, अपने माता पिता को और उस संस्था को देते हैं जहाँ से उन्होने कोचिंग ली. कनिक ने बातचीत के दौरान मोनिका गुप्ता को बताया कि जिस दिन आईआईटी का रिजल्ट आना था वो सारी रात सो नही पाया क्योकि टेंशन हो रही थी ... और सुबह भी बहुत जल्दी उठ कर बैठ गया.पर रिजल्ट देखते ही खुशी से उछ्ल पडा ... कुछ ही देर मे तो फोन और मिलने वाले की कतार ही लग गई ... घर पर उसकी मम्मी, पापा और छोटी बहन साक्षी थे जोकि उसकी सफलता से फूले नही समा रहे थे.

कनिक ने पढाई के बारे मे बताया कि वो दिन मे 6-7 घंटे ही पढता था. वो दिल्ली नारायणा से कोचिंग़ ले रहा था तो आने जाने मे काफी समय लग जाता था पर वो दिल्ली कभी नही रुका. कोचिंग के बाद वो वापिस पानीपत लौट जाता था. 

कनिक ने यह बताया कि वो एकदम रिलेक्स होकर पढता है टेंशन मे पढाई नही करता. बलिक कितनी बार तो टीवी देखते देखते भी पढता. बस पढते समय मन एक दम कूल रखता. हाँ, एक बात जरुर है कि अपना फोकस साफ रख कर स्लैबस पूरी तरह से तैयार करना चाहिए . रट्टा नही लगाना चाहिए उससे काम खराब हो जाता है.कनिक की मम्मी ममता जी जोकि एक हाउस वाईफ है उन्होने बताया कि कनिक देर रात तक पढता था तो वो उसका ध्यान रखती थी . उनकी कोशिश यही रहती थी कि कनिक को शांत माहौल मिले. वो कनिक की सफलता से बहुत खुश हैं पर वो यह भी कहती है कि कनिक ने महेनत बहुत की थी आईआईटी मे उम्मीद थी कि बहुत अच्छी रैंक आएगी ....पर फिर भी वो और उनका परिवार बहुत खुश और उत्साहित है .

कनिक ने पढाई के साथ साथ कवि सम्मेलन ,नाट्क क्विज और भाषण आदि मे भी बहुत भाग लिया है. वो मानते हैं कि सिर्फ पढाई ही काफी नही होती बलिक साथ साथ और अन्य प्रतियोगिताओ मे भाग लेने से आत्म विश्वास बढता है .

डोसा, छोले और राजमाह चावल के शौकीन कनिक कम्प्यूटर साईंस करना चाहते हैं. और सच्ची महेनत मे यकीन रखते हैं.

कनिक बच्चो को यही संदेश देना चाहते हैं कि बस महेनत करते चलो. सफलता जरुर मिलेगी. 

जो सपना कनिक लेकर चला आज वो सच बन कर मुस्कुरा रहा है .... भविष्य मे भी ऐसी सफलता मिलती रहे .... हमारी ढेरों शुभ कामनाए ....