सेमल जैसी काया लेकर देखो चंदा आया रे
रौशन जगमग मेरे अंगना देखो उतरा साया रे
पूनो वाली ,रात अमावास जैसी लगती दुनिया को
चांदनी मेरे द्वारे आई ,छाया जग मे उजियारा रे .
दूध कटोरे माफिक आंखिया,बिन बोले कह देती बतिया
रात बने दिन जगते जगते ,दिन भये सोते सोते रतिया
मुंह से दूध की लार गिरे तो मां ने हाथ फैलाया रे
चांदनी मेरे द्वारे आई ,छाया जग मे उजियारा रे .
गुरुवार, 10 जून 2010
दोस्त की बेटी के जन्म पर एक कविता -------- कवि दीपक शर्मा
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4 comments:
are waah badi hi pyaari kavita....meri ore se bhi janmdin ki badhayi dijiyega
Deepak ji bahut aachee lagi aapki kavita.
mujhe behad hi pasand aayee ye kavita.
Dost ko aapne bare hi anokhe andaj me badhai dee hai.
aapko bhee Bahdai...
Ashutosh
aapne to de hi di hai kavitamayi badhaayi...hamaari or se bhi janmdin ki badhaayi swikaar kare,,,,
kunwar ji,
बढ़िया है.
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