तब रिश्तेअग्नि के चारों ओरफेरे दे करतपाये जाते
प्रण ले करनिभाये भी जातेऔर कई बाररिश्तों मेएक पल निभाना भीहो जाता है कितना कठिनतभी तो आजकलरिश्ते कागज़ परलिखाये जाते हैंअदालत मे औरबनाये जाते हैवकील दुआराअब कितना आसान हो गयारिश्ते को तोड्नाकागज़ पर कुछ
शब्द जोड्ना
और हो जाना
बन्धन से आज़ाद
12 comments:
तभी तो आजकल
रिश्ते कागज़ पर
लिखाये जाते हैं
बहुत ही सुन्दर पंक्तियां सत्य को प्रस्तुत करते शब्द लाजवाब ।
बहुत ही मार्मिक.
जो रिश्ते कागज पर निभाए जाते हैं ...उनका हश्र आये दिन हम देखते ही हैं ...आजकल तो अग्नि के पवित्र फेरे लेने वालों का अंजाम भी कुछ खास सुखद नहीं रहा ...!!
सच्चाई को उकेरती एक दम सटिक प्रस्तुती।
nirmalaji,
" bahut bahut saty bhari baat aapne kahe di ...her alfaz saty se bhara ..behad khub surat ..rachana .."
------ eksacchai { AAWAZ }
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बहुत ही मार्मिक रचना अतिसुन्दर रचना........आंखे नम हो गयी!
वाह कितना बडा सच कह दिया आपने .बहुत सुन्दर.
हिन्दी साहित्यमंच का बहुत बहुत धन्यवादिस रचनाको छापने के लिये । बाके सब का भी धन्यवाद मेरे उत्साहवर्द्धन के लिये
जी धन्यवाद ...........निर्मला जी ऐसे ही अपना सहयोग बनाये रहें ।
बहुत ही सुन्दर रचना ....................रिश्ते पर केन्द्रित । बधाई
यथार्थ का अच्छा चित्रण। सच अब ये कहने वाले कहां मिलते हैं
साथ निभाने को संग खाई है जो क़समें
छोटी सी बात पर क्यों फैसला बदल लूं।
अच्छी अभिव्यक्ति है आपकी
सुंदर रचना
जय हो ...
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