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मंगलवार, 14 अप्रैल 2009

गज़ल


मेहरबानियों का इज़हार ना करो
महफिल मे यूँ शर्मसार ना करो

दोस्त को कुछ भी कहो मगर
दोस्ती पर कभी वार ना करो

प्यार का मतलव नहीं जानते
तो किसी से इकरार ना करो

जो आजमाईश मे ना उतरे खरा
ऐसे दोस्त पर इतबार ना करो

जो आदमी को हैवान बना दें
खुद मे आदतें शुमार ना करो

इन्सान हो तो इन्सानियत निभाओ
इन्सानों से खाली संसार ना करो

कौन रहा है किसी का सदा यहां
जाने वाले का इन्तज़ार ना करो

मरना पडे वतन पर कभी तो
भूल कर भी इन्कार ना करो

पाप का फल वो देता है जरूर
फिर माफी की गुहार ना करो

5 comments:

हिन्दी साहित्य मंच ने कहा…

मरना पडे वतन पर कभी तो
भूल कर भी इन्कार ना करो

पाप का फल वो देता है जरूर
फिर माफी की गुहार ना करो

बहुत खूब । सुन्दर लगी ये लाइनें । बधाई

Unknown ने कहा…

निर्मला जी , बहुत ही सुन्दर लगी आपकी ये गजल । कितना कुछ आप एक साथ लिख लेती है ।

बेनामी ने कहा…

इन्सान हो तो इन्सानियत निभाओ
इन्सानों से खाली संसार ना करो

Arvind Gaurav ने कहा…

जो आदमी को हैवान बना दें
खुद मे आदतें शुमार ना करो

इन्सान हो तो इन्सानियत निभाओ
इन्सानों से खाली संसार ना करो

vaaaah kya khub likha hai aapne.

देशांतर ने कहा…

ham to kud hi ghut ghut ke mar rahe hai . aatankwad se lekar na jane kitni samasyawon se ham roj marte hai .