कुमारेन्द्र सिंह सेंगर - आपका जन्म जनपद-जालौन, उ0प्र0 के नगर उरई में वर्ष 1973 में जन्म। प्रारम्भिक शिक्षा उरई में तथा उच्च शिक्षा भी उरई में सम्पन्न हुई। लेखन की शुरुआत वर्ष 1882-83 में एक कविता (प्रकाशित) के साथ हुई और तबसे निरंतर लेखन कार्य में लगे हैं। हिन्दी भाषा के प्रति विशेष लगाव ने विज्ञान स्नातक होने के बाद भी हिन्दी साहित्य से परास्नातक और हिन्दी साहित्य में ही पी-एच0डी0 डिग्री प्राप्त की।लेखन कार्य के साथ-साथ पत्रकारिता में भी थोड़ा बहुत हस्तक्षेप हो जाता है। वर्तमान तक देश की लगभग सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन। रचनाओं में विशेष रूप से कविता, ग़ज़ल, कहानी, लघुकथा, आलेख प्रिय हैं। महाविद्यालयीन अध्यापन कार्य से जुड़ने के बाद लेखन को शोध-आलेखों की ओर भी मोड़ा। अभी तक एक कविता संग्रह (हर शब्द कुछ कहता है), एक कहानी संग्रह (अधूरे सफर का सच), शोध संग्रह (वृन्दावनलाल वर्मा के उपन्यासों में सौन्दर्य बोध) सहित कुल दस पुस्तकों का प्रकाशन।
युवा आलोचक, सम्पादक श्री, हिन्दी सेवी, युवा कहानीकार का सम्मान प्राप्त डा0 सेंगर सामाजिक संस्था ‘दीपशिखा’, शोध संस्था ‘समाज अध्ययन केन्द्र’ तथा ‘पी-एच0 डी0 होल्डर्स एसोसिएशन’ के साथ-साथ जन-सूचना अधिकार का राष्ट्रीय अभियान का संचालन।सम्प्रति एक साहित्यिक पत्रिका ‘स्पंदन’ का सम्पादन कार्य कर रहे हैं। एक शोध-पत्रिका का भी सम्पादन किया जा रहा है।
इंटरनेट पर लेखन की शुरुआत ब्लाग के माध्यम से हुई। अपने ब्लाग के अतिरिक्त कई अन्य ब्लाग की सदस्यता लेकर वहाँ भी लेखन चल रहा है। शीघ्र ही एक इंटरनेट पत्रिका का संचालन करने की योजना है।
सम्पर्क- 110 रामनगर, सत्कार के पास, उरई (जालौन) उ0प्र0 285001
फोन - 05162-250011, 256242, 9415187965, 9793973686
जागरण
वह अपनी पूरी ताकत से, अपनी पूरी शक्ति लगा कर सड़क पर दौड़ी चली जा रही थी। सीने से अपनी नन्हीं बच्ची को दोनों हाथों के घेरे में छिपाये बार-बार पीछे मुड़ कर भी देखती जाती थी। दो-चार की संख्या में उसके पीछे पड़े लोग उसकी बच्ची को छीन कर मारना चाह रहे थे। तभी अचानक वह एक ठोकर खाकर सड़क पर गिर पड़ी, बच्ची उसकी बाँहों के सुरक्षित घेरे से छिटक कर सड़क पर जा गिरती है। इससे पहले कि वह उठ कर अपनी बच्ची को उठा पाती, एक तेज रफ्तार से दौड़ती हुई कार ने समूची सड़क को बच्ची के खून और लोथड़े से भर दिया। उसकी चीख ने समूचे वातावरण को हिला दिया। ‘‘क्या हुआ?’’ उसकी चीख सुन कर साथ में सो रहे उसके पति ने उसको सहारा देते हुए पूछा। तेज चलती अनियंत्रित सांसों पर किसी तरह नियंत्रण कर उसके मुँह से बस इतना ही निकला-‘‘मैं अपनी बच्ची की हत्या नहीं होने दूँगी।’’ पति ने उसकी हथेलियों को अपने हाथों में लेकर थपथपाते हुए उसे दिलासा दी। वह मातृत्व भाव समेट कर अपने पेट पर हाथ फेर कर कोख में पल रही बच्ची को दुलार करने लगी।
मंगलवार, 14 अप्रैल 2009
जागरण [लघुकथा]-कुमारेन्द्र सिंह सेंगर
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5 comments:
आपका हिन्दी साहित्य मंच पर प्रथम आगमन इस लघुकथा के माध्यम से हुआ । आपका बहुत बहुत स्वागत है ।अच्छी सीख देती आपकी यह लघुकथा । देश में आज भी भ्रूण हत्या होती है । भेदभाव किया जाता है लड़का लड़की में ।
संदेश देती हुई आपकी लघुकथा बहुत ही अच्छी लगी ।
bahut hi sundar laghukatha hai man ko choone vali badhaai
प्रात्साहन करने के लिए आप सभी का आभार।
बस एक प्रयास है कहाँ तक सफल होते हैं यह आप सब पर निर्भर करेगा।
Aapki laghu katha bahut achchhi lagi. badhai. - Satyendr sengar AD.
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