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बुधवार, 15 अप्रैल 2009

संदूक.......................[एक कविता] - दर्पण शाह" दर्शन"

आज फ़िर ,
उस कोने में पड़े,
धूल लगे संदूक को,
हाथों से झाड़ा, तो,
धूल आंखों में चुभ गई।
....संदूक का कोई नाम नहीं होता
...पर इस संदूक में एक खुरचा सा नाम था ।
सफ़ेद पेंट से लिखा।
तुम्हारा था या मेरा,
पढ़ा नही जाता है अब।


खोल के देखा उसे,
ऊपर से ही बेतरतीब पड़ी थी ...
'ज़िन्दगी'।
मुझे याद है......
...माँ ने,
'उपहार' में दी थी।
पहली बार देखी थी,
तो लगता था,
कितनी छोटी है।
पर आज भी ,जब पहन के देखता हूँ
तो, बड़ी ही लगती है,
शायद...

...कभी फिट आ जाए।


नीचे उसके,
तह करके सलीके से रखा हुआ है...
...'बचपन' ।
उसकी जेबों में देखा,
अब भी,
तितलियों के पंक ,

कागज़ के रंग,

कुछ कंचे ,

उलझा हुआ मंझा,

और,
और न जाने क्या क्या....
कपड़े छोटे होते थे बचपन में,
जेब बड़ी....


कितने ज़तन से,
...मेरे पिताजी ने,
मुझे,
ये 'इमानदारी' सी के दी थी ।
बिल्कुल मेरे नाप की ।
बड़े लंबे समय तक पहनी।
और,
कई बार,
लगाये इसमे पायबंद ,
कभी मुफलिसी के, और कभी बेचारगी के,
पर, इसकी सिलाई उधड गई थी, एक दिन।
....जब भूख का खूंटा लगा इसमे।
उसको हटाया,
तो नीचे पड़ी हुई थी 'जवानी',
उसका रंग...
उड़ गया था,
समय के साथ साथ।
'गुलाबी' हुआ करती थी ये....
अब पता नही...

कौनसा नया रंग हो गया है?


बगल में ही पड़ी हुई थी 'आवारगी',
....उसमें से,
अब भी,
शराब की बू आती है।


४-५ सफ़ेद, गोल,
खुशियों की 'गोलियाँ',
डाली तो थीं,संदूक में
पर वो खुशियाँ...

.... उड़ गई शायद।


याद है...
जब तुम्हारे साथ,
मेले में गया था,
एक जोड़ी वफाएं खरीद ली थी।
तुम्हारे ऊपर तो पता नहीं,
पर मुझपे ये अच्छी नही लगती।
और फ़िर...
इनका 'Fashion' भी,
...नहीं रहा।
'Joker' जैसा लगूंगा इसको लपेटकर।


...और ये शायद 'मुस्कान' है।
तुम,
कहती थी न....
जब मैं इसे पहनता हूँ,
तो अच्छा लगता हूँ।
इसमें भी दाग लग गए थे,
दूसरे कपडों के।
हाँ...
इसको.....

'जमाने' और 'जिम्मेदारियों' के बीच....

रख दिया था ना ।
तब से पेहेनना छोड़ दी।


अरे...
ये रहा 'तुम्हारा प्यार'।
'valentine day' में,
दिया था तुमने।
दो ही महीने चला था,
हर धुलाई में, सिकुड़ जाता था।
हाँ...
खारा पानी ख़राब होता है, इसके लिए,
भाभी ने बताया भी था,
...पर आखें ये न जानती थी।


चलो,
बंद कर देता हूँ,
सोच के...
जैसे ही संदूक रखा, देखा,
यादें तो बाहर ही छूट गई,
बिल्कुल धवल,
Fitting भी बिल्कुल सही
...लगता था,
आज के लिए ही खरीदी थी,
उस 'वक्त' के बजाज से जैसे,
कुछ लम्हों की कौडियाँ देकर...
चलो,
आज इसे ही...

पहन लेता हूँ....

11 comments:

हिन्दी साहित्य मंच ने कहा…

दर्पण शाह " दर्शन " जी हिन्दी साहित्य मंच पर आपका बहुत बहुत स्वागत है । आपकी रचना संदूक बेहद सुन्दर लगी । आपने इस कविता के माध्यम जिस तरह का चित्र उपस्थित किया है वह काबिले तारीफ है । पढ़ते हुए कविता को ऐसा लगा हि नहीं कि यह सब काल्पनिक हो सजीव प्रतीत हो रहा है । मार्मिक प्रस्तुती के धन्यवाद । शुभकामनाएं

कडुवासच ने कहा…

...atisundar!!!!!!

Unknown ने कहा…

दर्पण जी , आपने जिंदगी की हकीकत को बयां किया बहुत ही सरल शब्द भावों से । कविता बहुत सुन्दर लगी । बधाई

Unknown ने कहा…

हिन्दी साहित्य मंच पर आपका स्वागत है ।

निर्मला कपिला ने कहा…

darpan shah ji ek behtreen,laajvab, dil ko choo lene vali abhivyakti hai aapko bahut bahut badhai

Urmi ने कहा…

आप का ब्लोग मुझे बहुत अच्छा लगा और आपने बहुत ही सुन्दर लिखा है ! मेरे ब्लोग मे आपका स्वागत है !

दर्पण साह ने कहा…

@ Hindi Sahitya manch: Meri kavita ko prakashit karne hetu Dhanyavaad !!

@ anya : aap sabhi ko dhanyvaad meri kavita ko sarahne ke liye....

:)

मुकेश कुमार तिवारी ने कहा…

दर्पण शाह जी,

क्या कहूँ और क्या लिखूं इस कविता के बारे में मेरी कोई राय/टिप्प्णी मायने नही रखती.

एक बेजोड़ रचना के लिये ढेरों बधाईयाँ.

मुकेश कुमार तिवारी

"अर्श" ने कहा…

PRIYA DARPARN JI,
AAPKI KAVITA PADHI HAI BAHOT HI ACHHI LAGI BAHOT HI KHUBSURAT BHAAV SE BHARI HUI HAI YE KAVITA JEEVAN KE HAR PAHALU KO AAPNE BAHOT HI KARINE SE SAJAAYA HAI.YE BAAT BAHOT HI SARAAHNIYA HAI AAP GAZAL KE SAATH SAATH KAVITA BHI ACHHI KAH LETE HAI BAHIRMUKHI PRATIBHAA KE DHANI HAI AAP.. EK KUSHAL KAARIGAR/SHILPI KI YAHI PAHCHAAN HAI AUR AAP ME WO SAMBHAAVNAAYE NAZAR AATI HAI... AAPKI KAVITA BAHOT PYARI HAI BADHAAYEE IS KAVITA KE LIYE...


ARSH

Udan Tashtari ने कहा…

अति सुन्दर-दिल को छूती हुई!!

गौतम राजऋषि ने कहा…

लीजिये दरपण साब..यहाँ भी आ गया मैं खिंचा-खिंचा इस मायावी नज़्म के तिलिस्म से।
और यहाँ से हो गया ये कापी-पेस्ट...
इजाजत है ना इसे देहरादून भेजने की। अपनी उस देहरादून वाली को इंटरनेट से लगाव नहीं...