बचपन से ही सपन दिखाया, उन सपनों को रोज सजाया।
पूरे जब न होते सपने, बार-बार मिलकर समझाया।
सपनों के बदले अब दिन में, तारे देख रहा हूँ।
सपना हुआ न अपना फिर भी, सपना देख रहा हूँ।।
पढ़-लिखकर जब उम्र हुई तो, अवसर हाथ नहीं आया।
अपनों से दुत्कार मिली और, उनका साथ नहीं पाया।
सपन दिखाया जो बचपन में, आँखें दिखा रहा है।
प्रतिभा को प्रभुता के आगे, झुकना सिखा रहा है।
अवसर छिन जाने पर चेहरा, अपना देख रहा हूँ।
सपना हुआ न अपना फिर भी, सपना देख रहा हूँ।।
ग्रह-गोचर का चक्कर है यह, पंडितजी ने बतलाया।
दान-पुण्य और यज्ञ-हवन का, मर्म सभी को समझाया।
शांत नहीं होना था ग्रह को, हैं अशांत घर वाले अब।
नए फकीरों की तलाश में, सच से विमुख हुए हैं सब।
बेबस होकर घर में मंत्र का, जपना देख रहा हूँ।
सपना हुआ न अपना फिर भी, सपना देख रहा हूँ।।
रोटी जिसको नहीं मयस्सर, क्यों सिखलाते योगासन?
सुंदर चहरे, बड़े बाल का, क्यों दिखलाते विज्ञापन?
नियम तोड़ते, वही सुमन को, क्यों सिखलाते अनुशासन?
सच में झूठ, झूठ में सच का, क्यों करते हैं प्रतिपादन?
जनहित से विपरीत ख़बर का, छपना देख रहा हूँ।
सपना हुआ न अपना फिर भी, सपना देख रहा हूँ।।
मंगलवार, 18 जनवरी 2011
सपना -------------[श्यामल सुमन]
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
7 comments:
बस सिर्फ़ सपने ही रह गये हैं बाकी तो हकीकत सभी को पता ही है…………सुन्दर अभिव्यक्ति।
खरी खरी किन्तु सत्य -
अच्छी रचना -
शुभकामनायें
achchha hai !
रोटी जिसको नहीं मयस्सर, क्यों सिखलाते योगासन?
सुंदर चहरे, बड़े बाल का, क्यों दिखलाते विज्ञापन?
सपने तो सपने रह गये ।
वाह अच्छी रचना पढना अच्छा लगा ।
जी धन्यवाद ।
pata nahi sapne sach hota hai ya jhoot hote hai kinto ye sach hai hum sapno mai apni khavyesho ko ji liye karte hai.
pata nahi sapne sach hota hai ya jhoot hote hai kinto ye sach hai hum sapno mai apni khavyesho ko ji liye karte hai.
niyam todte, vahi suman ko kyon sikhlate anushasan.
bahut hi khoobsurat or lazawab abhivyakti. jaise ki :- wo kya dikhayenge raah mujhko, jinhe khud apna pata nahi hai.
एक टिप्पणी भेजें