मधु अधरों का मोहक रसपान,
नीर नैन बेजान,निष्प्राण,
मन आँगन में स्नेह प्रेम का कलरव।
इस जहान में रहकर भी,
घुम आता है उस जहाँ के पार,
क्या यही है प्यार?
मुक राहों में स्वयं से अंजान,
बेजान काया को भी अभिमान।
अनछुए,अनोखे बातों से दबा लव,
अरमानों को लगे पँख नव।
सौ कष्टों से पूरित,
उर की व्यथा का इकलौता उद्धार,
क्या यही है प्यार?
निशदिन बस प्यार का गुणगान,
साथी की बातों का बखान।
नई दुनिया से इक नया लगाव,
नैन और अधरों से छलकता भाव।
ह्रदय में ही मिल जाता,
प्रेमियों को इक नया संसार,
क्या यही है प्यार?
8 comments:
बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति..
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।
बहुत सुंदर ... प्रबह्वी भावाभिव्यक्ति
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
निर्दय जगत में एक नया संसार मन के भावों का।
Dhanyawad aap sabhi ko....yuhi mera hausla badhate rahe.
pata nahi ji pyar kaia hota hai ?
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
जी धन्यवाद।
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