आज ये खामोशियाँ सिमटती क्यों नहीं
हाल-ऐ-दिल आपके लब सुनते क्यों नहीं..
कभी तो फैला दो अपनी बाहों का फलक
मेरी आँखों की दुआ तुम तक जाती क्यों नहीं..
दर्द-ऐ-दिल बार-बार पलकों को भिगो जाता है ...
आपका खामोश रहना मुझे भीतर तक तोड़ जाता है..
मुहोब्बत मेरी जिंदगी की मुझसे रूठने लगी है ..
अंधेरे मेरी जिंदगी की तरफ़ बढ़ने लगे है..
बे-इंतिहा मुहोब्बत का असर आज होता क्यों नहीं..
मेरी आत्मा में बसे हो तुम, ये तुम जानते क्यों नहीं..
दिन-रात मेरी दुआओ में तुम हो ये तुम मानते क्यों नहीं ..
कोई वजूद नही मेरा तुम बिन, ये तुम जानते क्यों नहीं॥
खामोश लब तुम्हारे आज बोलते क्यों नहीं
भेद जिया के मुझ संग खोलते क्यों नहीं..!!
मंगलवार, 18 मई 2010
तुम्हारी खामोशियाँ .......(गजल)................अनामिका (सुनीता)
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16 comments:
दिन-रात मेरी दुआओ में तुम हो ये तुम मानते क्यों नहीं ..
कोई वजूद नही मेरा तुम बिन, ये तुम जानते क्यों नहीं॥
बहुत अच्छी लगी ये लाइन ....यूं ही लिखती रहें
bahut hi unda gazal lagi ...padh kar mza aa gya .. badahi
pyar par sundar gazal ...shabd kuch kamjor lage ...aabhar
bahut khub ...gazal bahut hi shaandar hai ..ye sher bahut hi accha laga .
दिन-रात मेरी दुआओ में तुम हो ये तुम मानते क्यों नहीं ..
कोई वजूद नही मेरा तुम बिन, ये तुम जानते क्यों नहीं॥
खामोश लब तुम्हारे आज बोलते क्यों नहीं
भेद जिया के मुझ संग खोलते क्यों नहीं..!!
बेहतरीन रचना एहसास की
आज ये खामोशियाँ सिमटती क्यों नहीं
हाल-ऐ-दिल आपके लब सुनते क्यों नहीं..
बहुत ही सुन्दर भाव्।
भावों को बेहतरीन शब्द दिए हैं....सुन्दर रचना
thik hai.
parkar accha laga.
aapse aur behtar GAZAL ki umeed hai.'
Ashutosh
sundar kavita...
badhaii..
एहसास से सरोबर रचना । सुन्दर........
सुन्दर रचना. बधाई.
are waah, bahut khoob, badhaai
bahut khub ...gazal bahut hi shaandar hai
achhi rachna hai....urdu ke lafjon ka paryog achhe se kiya hai....isse bhi behtar ki umeed rahegi.
आप सब ने मेरी रचना को सराहना के शब्द दिए इसके लिए में आप सब की दिल से आभारी हूँ.
सुन्दर भावाव्यक्ति, बधाई--
यह मुकम्मिल गज़ल नहीं---इसे नज़्म, कलाम या कविता कहिये , गज़ल कहने का और प्रयास करें.
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