जो उचित नहीं है हर जगह वो काम हो रहा है
कल तक था जिसपर सबको भरोसा
आज वही बेवजह बदनाम हो रहा है
होना था जिस काम को परदे में
पता नहीं क्यों सरेआम हो रहा है
दुनिया में बढ़ रही है आबादी इस कदर
जमी को छोडिये, अजी आसमां नीलाम हो रहा है
बईमानी और घूसखोरी की चल पड़ी प्रथा ऐसी
जो जितना बदनाम है, उसका उतना नाम हो रहा है
कही मर रहे है भूख से लोग
तो किसी के यहाँ खा पीकर आराम हो रहा है
झूठ बोलना पाप है इतना तो सुना था
क्या खूब सच बोलने का अंजाम हो रहा है !
बुधवार, 19 मई 2010
क्या खूब सच बोलने का अंजाम हो रहा है --------- {कविता} -------- सन्तोष कुमार "प्यासा"
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3 comments:
सार्थक प्रयास,अच्छी सोच /
waah sundar
bhut kub pyasha ji apne kaphi pyara vyamg kiya hai
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