आज एक परिंदे को,
प्यार में तड़फते देखा.
उसे प्यार में मरते देखा,
और देखा प्यार के लिए जीने की तम्मना.
मैंने देखा उसके प्यार को,
वह निष्ठुर बना रहा.
न समझ पाया परिंदे के प्यार को,
और बन बैठा हत्यारा अपने प्यार का.
क्या गुनाह किया परिंदे ने,
सिर्फ किया तो उसने प्यार था.
जी रहा वो हत्यारा पँछी का,
आज किसी दूसरे यार संग.
प्रमेन्द्र
प्यार में तड़फते देखा.
उसे प्यार में मरते देखा,
और देखा प्यार के लिए जीने की तम्मना.
मैंने देखा उसके प्यार को,
वह निष्ठुर बना रहा.
न समझ पाया परिंदे के प्यार को,
और बन बैठा हत्यारा अपने प्यार का.
क्या गुनाह किया परिंदे ने,
सिर्फ किया तो उसने प्यार था.
जी रहा वो हत्यारा पँछी का,
आज किसी दूसरे यार संग.
प्रमेन्द्र
4 comments:
बहुत ही सुन्दर भाव, आभार ।
बहुत ही उम्दा व लाजवाब भाव लगें ।
मैंने देखा उसके प्यार को,
वह निष्ठुर बना रहा.
न समझ पाया परिंदे के प्यार को,
और बन बैठा हत्यारा अपने प्यार का.
आपकी ये पंक्ति बहुत उम्दा लगी ।
बहुत ही उम्दा व खूबसूरत अभिव्यक्ति लगी ।
एक टिप्पणी भेजें