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शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2010

प्यार का पंरीदा

आज एक परिंदे को,
प्यार में तड़फते देखा.
उसे प्यार में मरते देखा,
और देखा प्यार के लिए जीने की तम्मना.

मैंने देखा उसके प्यार को,
वह निष्ठुर बना रहा.
न समझ पाया परिंदे के प्यार को,
और बन बैठा हत्यारा अपने प्यार का.

क्या गुनाह किया परिंदे ने,
सिर्फ किया तो उसने प्यार था.
जी रहा वो हत्यारा पँछी का,
आज किसी दूसरे यार संग.
 प्रमेन्द्र 

4 comments:

हिन्दी साहित्य मंच ने कहा…

बहुत ही सुन्दर भाव, आभार ।

जय हिन्दू जय भारत ने कहा…

बहुत ही उम्दा व लाजवाब भाव लगें ।

Unknown ने कहा…

मैंने देखा उसके प्यार को,
वह निष्ठुर बना रहा.
न समझ पाया परिंदे के प्यार को,
और बन बैठा हत्यारा अपने प्यार का.

आपकी ये पंक्ति बहुत उम्दा लगी ।

Mithilesh dubey ने कहा…

बहुत ही उम्दा व खूबसूरत अभिव्यक्ति लगी ।