मेरी रातें , मेरा शकुन है, मेरी सुविधा है, मेरी रातें , मेरी रचनात्मकता और सृजनात्मकता आलस्य का असीम अवकाश लेकर आती रातें, मैं अँधेरी-उजली रातों में ही जीवित हूँ, शुक्लपक्ष की रातें ,तारो भरी रातें , रातें मेरी वास्तविक जगह है, मेरा पत्ता है, रात के मोर्चे पर ही मेरी तैनाती है, मेरी रातें उन हजारों -लाखों मेहनतकशो के नाम, जो आज भी भूखे पेट सोयें है.
गुरुवार, 25 फ़रवरी 2010
मेरी रातें-------[कविता]-----चंद्रपाल सिंह
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
7 comments:
चंद्रपाल जी आपने रात के तन्हाई में होनें वाले एहसास का बखूबी वर्णन किया है , । आभार
बहुत ही खूबसूरत रचना लगी , बधाई ।
Bahut Sundar rachana.....Aabhar!
http://kavyamanjusha.blogspot.com/
बहुत गहरी अभिव्यक्ति है चन्द्रपाल जी को बधाई
बहुत सुन्दर रचना है!
बेहतरीन अभिव्यक्ति लगी , बधाई आपको ।
aap sabhi ko meri rachna pasand aai iska sukriya..chandrapal@aakhar.org, http://aakhar.org
एक टिप्पणी भेजें