शजर पर एक ही पत्ता बचा है
हवा की आँख में चुभने लगा है
नदी दम तोड़ बैठी तशनगी से
समन्दर बारिशों में भीगता है
कभी जुगनू कभी तितली के पीछे
मेरा बचपन अभी तक भागता है
सभी के ख़ून में ग़ैरत नही पर
लहू सब की रगों में दोड़ता है
जवानी क्या मेरे बेटे पे आई
मेरी आँखों में आँखे डालता है
चलो हम भी किनारे बैठ जायें
ग़ज़ल ग़ालिब सी दरिया गा रहा है
8 comments:
परवाज जी क्या बात है। एक और लाजवाब गजल। बधाई.......
नदी दम तोड़ बैठी तशनगी से
समन्दर बारिशों में भीगता है
एक निहायत ही खूबसूरत सी कशिश है ग़ज़ल में..एक एक शेर जैसे नगीने सा जड़ा गया हो..बधाई
शजर पर एक ही पत्ता बचा है
हवा की आँख में चुभने लगा है
नदी दम तोड़ बैठी तशनगी से
समन्दर बारिशों में भीगता है
खूबसूरत गजल ।
सभी के ख़ून में ग़ैरत नही पर
लहू सब की रगों में दोड़ता है
सही कहा ।
वाह वाह
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Carbon Nanotube As Ideal Solar Cell
बेहद खूबसूरत गजल ।
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