कमली आज बिल्कुल भी बोल नही रही थी कयों कि उसे मार पड़ी थी ,उसने घर का काम जो पूरा नही किया था।कमली के लिए ये कोई नयी बात नही थी , दिन या दो दिन में मार पड़ ही जाती थी बेचारी अपना गुस्सा चुप रहकर ही निकालती थी बिना किसी से बात किये हुए। बचपन से ही अभागी रही थी , पैदा होते ही मां चल बसी और बाप का कुछ पता ही नही बचपन क्या होता है पता ही नही? रहने के लिए उसेमिला विशाल आकाश और खेलने के लिए प्रकृति की गोद। दुखमय जीवन में खुश रहने के सारे तरीके सीख लिये थे कमली ने। हमेशा छोटी-२ बातों पर मुस्कुराती , सब की चहेती थी, पास की बुआ जी बहुत मानती थी कमली को। वैसे तो कपड़े और खाने की दिक्कत नही हुई पर प्यार नही मिला। इन सब बातों से परे हटकर कमली खुश थी। पढ़ाई का शौक था, पर उसकी चाची उसकी सबसे बड़ी दुश्मन थी, जानवरों जैसा वर्ताव था कमली के साथ, बात-बात पर पिटाई कर देती थी उसकी. इसीलिए आज भी घर का सारा काम न होने पर पिटाई की थी। कमली को देखा नही था मैने ,केवल सुना था। कमली को आज देखा मैने पर बात नहीं कर सकता था, वह सोचुकी थी गहरी नींद में हमेशा के लिएचल दी थीअनन्त यात्रा पर। मानों उपहास कर रही हो जमाने का किअब कौन छीन सकता है मेरी खुशी और मेरी हसी को?वह आजाद हो गई थी अपनी बेड़ियों कोतोड़ के वैसे भी उसकि हक नही था इस जहां में रहने का। जीवन के असीम आनंनद में कुछ भी नही था उसके लिए। सफेद कफन सेढ़का उसका शरीर, और कफन के उपर कुछ गुड़हल और गेदें के फूलथे. शायद जिसके साथ वो कभी खेला करती रहीहोगी। वही साथ है उसके। पास बैठी कुछ औरतें और दूर पर शोर करते बच्चे। कुछ देर तक मैं ररूका रहा उसके चेहरे को दखने के लिए। उसकी एक झलक पाने के लिए। काश कोई आये और उसके चेहरे से सफेद कफन को हटाये पर ऐसा नही हो रहा था। पेड़ की पत्तियों के बीच से सूरज की किरणें भी आज कमली को देखने के लिए व्याकुल थी. परेशान थी .पर वह तो चुपचाप सो रही थी किसी की परवाह किये बिना। ऐसे में हवा के एक झोके ने उसे जगाने का प्रयास किया था ,पर कमली तो न उठी पर उसके चेहरे से कफन जरूर हट गया था। कुछ देर तक मैं एकटक देखता रहाथा कमली को। कितनी मासूम ,कितनी भोली सूरत ।एकाएक मै उठकर चल दिया था वहां से दुख और ग्लानि लिये हुए मन में । मन में यही प्रश्न लिए कि उसने अपने को खत्म कयों किया ? आखिर क्यों?
रविवार, 13 सितंबर 2009
कहानी कमली की - कहानी ( नीशू तिवारी की )
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2 comments:
निशू जी मार्मिक लघु कथा है । आप तो कहानी भी अच्छी लिख लेते हैं आशा है जल्दी ही और कहानी भी पढने को मिलेगी बधाई
vastavikta asal me bahut ki krur dikhai deti hai, hindi ki vedna jo mere is kavi bhai ne likhi hai wah yatharth ke kabhi sameep hai ya yun kahe ki yatharth ka pratiroop hai.
mai badhai dena hu apne is kavi mitra ko jo apni shradha samvedna unhone is parivesh me bhi hindi ke prati dikhai hai wah shradhyey hai
aapko naman hai punah naman hai.
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