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बुधवार, 25 मार्च 2009

अलग-अलग त्रिवेनियाँ - एक कविता [ साहित्य मंचीय नये कवि भूतनाथ का परिचय ]

भूतनाथ....जी का वास्तविक नाम राजीव थेपडा । आपकी शिक्षा स्तानक( कला) स्तर तक हुई । आपने फिलहाल व्यापार और अनियमित लेखन (तथा आकाशवाणी में अनियमित नाटक आदि ) को चुना । आप १९८५ से २००० तक लेखन....गायन...अभिनय....निर्देशन....चित्रकारी आदि सभी विद्याओं में अनियमित रूप से सक्रिय....कभी इसमें....कभी उसमें....सैकडों नाटकों एवं कईस्वलिखित व् स्वनिर्देशित नाटकों का मंचन....तथा उनमें ढेरों पुरस्कार....गायन में ढेरों पुरस्कार....अभिनय में कईयों बार बेस्ट ऐक्टर का खिताब,विभिन्न राज्य स्तरीयप्रतियोगिताओं में.....मगर इन सबके बीच घरेलु मोर्चे पर इक अलग ही तरह की ऊहापोह....या कहूँ कि जंग....और अंततः व्यापार में जाने की मजबूरी....!!

आपका शौक साहित्य से जुड़ा रहा । आपने कई स्थानीय अखबार और पत्रिकाओ मं लेखन कार्य किया है ।
भूतनाथ जी की आप पहले भी दो रचनाएं पढ़ चुके हैं इसी श्रृंखला में आज एक और रचना आपके पढ़न हेतु प्रस्तुत है -

अलग-अलग त्रिवेनियाँ



अजी कुरेदते हैं क्या राख मिरी
जो मर गए क्या ख़ाक मिलेंगे...!!
तमाम सीनों को चीर के देखो
दिल तो सबके ही चाक मिलेंगे....!!
क्या अदा है इन अदावारों की
दूर से ही कहते हैं,फिर मिलेंगे.....!!
आज सोना बटोर कर खुश होते हैं
और कल जमीं पर राख मिलेंगे....!!
गले मिलने की नौबत कब आएगी
भई,पहले तो प्यार से हाथ मिलेंगे !!
अभी तुझमें बहुत गर्मी है "गाफिल"
तुझसे इक ठोकर के बाद मिलेंगे !!
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हम धरती पर प्यार से जी सकें,गर ये हो
तो यही हमसब पर हमारा धन्यवाद हो !!
हमारे आदमी होने में ही भलाई है सच
हम आदमियों से हमारी दुनिया आबाद हो !!
हम हर उस किसी के काम आ सकें याँ पे
जिस किसी की भी याँ जिन्दगी नासाज हो !!
धरती पर बहुतों को प्यार से हम याद आ सकें
इतना बेहतरीन जीकर हम याँ से खैरबाद हों..!!
आसमान हर किसी का ही तो है "गाफिल"
अच्छा हो कि हर किसी का यहाँ परवाज हो !!

3 comments:

Unknown ने कहा…

भूतनाथ जी , आपके बारे जानकर अच्छा लगा । आपकी दोनों रचनाएं पढ़ी थी मैंने बेहद अच्छी लगी । साहित्य पूर्ण पराकाष्ठा को प्रदर्शित करती है आपकी लेखनी । आपके शब्द कोष का यहां पर बेहतर प्रदर्शन दिख रहा है । अलग अलग त्रिवेनियां अतिसुन्दर रचना है । धन्यवाद

हिन्दी साहित्य मंच ने कहा…

शुद्ध कविता का सार आपकी रचना में भूतनाथ जी । अतिविशिष्ट बना है ये साहित्य । बहुत बहुत शुभकामनाएं

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बुझे हुए अंगारों में तो, केवल राख मिलेगी।
शमशानों में ढूँढोगे तो केवल खाक मिलेगी।
मुझको पाओगे मेरी ही रचना की परवाजों में।
मुझको शब्दों में पाओगे,गीतों की आवाजों में।