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सोमवार, 23 मार्च 2009

मैं भी कुछ कहूँ.........!![एक कविता] भूतनाथ की

बस तुझे बसा रखा है आंख भर....
अब कुछ नहीं बसता आँख पर !!
मरने के बाद खुद को देखा किया
मैं बचा हुआ था बस राख भर....!!
झुक जाने में आदम को शर्म कैसी
कौन बैठा रहता है तिरी नाक पर !!
दिन को तो फुरसत नहीं मिलती
शब रोया करती है रोज़ रात भर !!
गौर से देखो तो अलग नहीं तुझसे
खुदा इत्ता-सा है,बस तेरी आँख भर !!
बसा तो लेता गाफिल तुझे भी भीतर
दामन ही छोटा-सा था,बस चाक भर !

6 comments:

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

बस तुझे बसा रखा है आंख भर....
अब कुछ नहीं बसता आँख पर !!
मरने के बाद खुद को देखा किया
मैं बचा हुआ था बस राख भर....!!

waah ji waah...bhot khoob....!!

बेनामी ने कहा…

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Jai..Ho...

Unknown ने कहा…

भूतनाथ जी , बहुत ही सुन्दर रचना लगी आपकी । बधाई

हिन्दी साहित्य मंच ने कहा…

बेशक आपकी रचना बहुत ही सुन्दर है , भावात्मक अभिव्यक्ति बहुत सुन्दर है । शब्द चयन अच्छा लगा ।

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" ने कहा…

भई वाह्! भूतनाथ जी......बहुत बढिया.....

बेनामी ने कहा…

गौर से देखो तो अलग नहीं तुझसे
खुदा इत्ता-सा है,बस तेरी आँख भर !!
-सुंदर.