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बुधवार, 4 मई 2011

शान से...............अभिषेक

कुछ दूर चले थे बटोही

एक अनजाने से पथ पर

पत्थर के शहर से दूर

बेगाने महफ़िल से हटकर


सपनो को पूरा करने

वो बढ़ते रहे निरंतर

बादल था उनका आवरण

पंछी करते थे मनोरंजन


माँ से कहकर निकले थे

हम लायेंगे तेरे सपने

जो खो गए हैं अन्तरिक्ष में

वो होंगे तेरे अपने


रक्त गिरा चरणों से

लेकिन साहस न डिग पाया

वो धीर थे,असहाय न थे

उन्होंने इसको यथार्थ बनाया


माँ करती थी इंतज़ार

एक दिन सच होगा अपना सपना

मन्नत नहीं मांगी कोई उसने

वो थी एक वीरांगना


क्षत्रिय लालो की वो माँ थी

उसमे शौर्य प्रबल था

शान से लौटेंगे मेरे बच्चे

ये विश्वास अटल था


रण था उनके त्याग का

वो पांडव अब भी जीते हैं

कुंती है हर भारत के माँ में

वो शान देश की रखते हैं


हर सत्य के साथ युधिस्ठिर

वीर जवानो के संग अर्जुन है

हर दुष्टों का संहार करेगा

हर इंसान में एक भीम है


आंच ना आएगी तिरंगे पर

नकुल सहदेव है हर लाल में

तोड़ न पायेगा कोई हमें

जो डट जायेंगे हम शान से


6 comments:

prerna argal ने कहा…

हर सत्य के साथ युधिस्ठिर
वीर जवानो के संग अर्जुन है
हर दुष्टों का संहार करेगा
हर इंसान में एक भीम है
bahut sunder rachanaa .bahut bahut badhaai

Unknown ने कहा…

उर्जस्वित कविता !

नीलांश ने कहा…

aapks bahut aabhaar prerna ji
aur albela ji aapka bahut aabhaari hoon
aap hasya kavita se chahu or shitalata pahunchaate rahen...

neena mandilwar ने कहा…

bahut dino ke bad ek josh bhri kavita uhi rachte rahi .badhaeeeeeeeeeee

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

बहुत खूब।

नीलांश ने कहा…

neena ji,devendra ji bahut aabhaar

good wishes