कुछ दूर चले थे बटोही एक अनजाने से पथ पर पत्थर के शहर से दूर बेगाने महफ़िल से हटकर वो बढ़ते रहे निरंतर बादल था उनका आवरण पंछी करते थे मनोरंजन हम लायेंगे तेरे सपने जो खो गए हैं अन्तरिक्ष में वो होंगे तेरे अपने लेकिन साहस न डिग पाया वो धीर थे,असहाय न थे उन्होंने इसको यथार्थ बनाया एक दिन सच होगा अपना सपना मन्नत नहीं मांगी कोई उसने वो थी एक वीरांगना उसमे शौर्य प्रबल था शान से लौटेंगे मेरे बच्चे ये विश्वास अटल था वो पांडव अब भी जीते हैं कुंती है हर भारत के माँ में वो शान देश की रखते हैं वीर जवानो के संग अर्जुन है हर दुष्टों का संहार करेगा हर इंसान में एक भीम है नकुल सहदेव है हर लाल में तोड़ न पायेगा कोई हमें जो डट जायेंगे हम शान से
सपनो को पूरा करने
माँ से कहकर निकले थे
रक्त गिरा चरणों से
माँ करती थी इंतज़ार
क्षत्रिय लालो की वो माँ थी
रण था उनके त्याग का
हर सत्य के साथ युधिस्ठिर
आंच ना आएगी तिरंगे पर
बुधवार, 4 मई 2011
शान से...............अभिषेक
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6 comments:
हर सत्य के साथ युधिस्ठिर
वीर जवानो के संग अर्जुन है
हर दुष्टों का संहार करेगा
हर इंसान में एक भीम है
bahut sunder rachanaa .bahut bahut badhaai
उर्जस्वित कविता !
aapks bahut aabhaar prerna ji
aur albela ji aapka bahut aabhaari hoon
aap hasya kavita se chahu or shitalata pahunchaate rahen...
bahut dino ke bad ek josh bhri kavita uhi rachte rahi .badhaeeeeeeeeeee
बहुत खूब।
neena ji,devendra ji bahut aabhaar
good wishes
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