ये है मेरी पहली कविता जो मैने पाँचवी क्लास में लिखा था....सोचा आज आपलोगों के समक्ष रखूँ........
जब राम ने सृष्टि पर जन्म लिया,
अयोध्या नगरी में फूल खिला।
मयूर मस्त हो नाच उठे।
त्रिदेव दर्शनार्थ लालायित हुएँ,
मोहक छवि की दर्शन के लिएँ।
ज्यों ज्यों कमल का फूल खिला,
त्यों त्यों राम भी खिलने लगे।
कौशल्या थी सच की पुजारी,
भगवान हुए तब धनुर्धारी।
बनवास ही उनका भावी था,
रावण को मारना न्याय ही था।
रावण तो गया स्वर्ग सिधार युद्ध में,
भगवान हुए तब दुख के आधार।
चला गया विद्वान सृष्टि से,
सृष्टि लगता है मुझको खाली,
भगवन के इस वचन को सुन,
सीता हुई आश्चर्य चकित नारी।
रावण तो था दुष्ट अत्याचारी,
कहाँ लगता मुझे सृष्टि खाली।
भगवन धिमी हँसी बिखेरते बोले,
फिर भी लगता सृष्टि खाली।
7 comments:
वाह ...बहुत सुंदर .
bhavbhini prastuti..................
अच्छा प्रयास था आपका ...उसी प्रयास के बल पर आज आप यहाँ हो ...बहुत सुंदर आशा है आप अपनी लेखनी से ब्लॉग जगत को निरंतर रोचक और भाव प्रवण रचनाओं के माध्यम से समृद्ध करते रहेंगे ..आपका आभार
तब ज्यादा बढीया लिख लेते थे :)
achi rachna
कमाल है ! उस छोटी उम्र में इतनी सुन्दर कविता ..
बहुत ही अच्छी उस समय के लिये।
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