हमारा प्रयास हिंदी विकास आइये हमारे साथ हिंदी साहित्य मंच पर ..

शुक्रवार, 21 जनवरी 2011

लेकिन तुम नहीं आये---[मिथिलेश]


आज फिर देर रात हो गयी
लेकिन तुम नहीं आये
कल ही तो आपने कहा था
आज जल्दी आ जाऊंगा
जानती हूं मैं
झूठा था वह आश्वासन .......
पता नहीं क्यों
फिर भी एक आस दिखती हैं
हर बार ही
तुम्हारे झूठे आश्वासन में........
हाँ रोज की तरह आज भी
मैं खूद को भूलने की कोशिश कर रही हूँ
यादों के सहारे
रोज की तरह सुबह हो जाए
और तुमको बाय कहते ही देख लूं..........
आज भी वहीं दिवार सामने है मेरे
जिसमे तस्वीर तुम्हारी दिखती है
जो अब धूंधली पड़ रही है
जो आपके वफा का
अंजाम है या शायद
बढ़ती उम्र का एहसास........
वही बिस्तर भी है
जिसपर मैं रोज की तरह
आज भी तन्हा हूँ
अब तो इसे भी लत लग गई है
मेरी तन्हाई की..............
दिवार में लगा पेंट भी
कुरेदने से मिटनें लगा है
मेरे नाखून भी जैसे
खण्डहर से हो गये है
आसुओं की धार से
तकिए का रंग भी हल्का होने लगा है
सजन लेकिन तुम नहीं आये
तुम नहीं आये ।।

6 comments:

कृष्ण मिश्र ने कहा…

बेहतरीन

vandana gupta ने कहा…

ये मिथिलेश की एक सुन्दर रचना है पहले भी पढी थी…………सुन्दर भाव्।

Kailash Sharma ने कहा…

गहन अनुभूति से परिपूर्ण एक मर्मस्पर्शी रचना..बहुत सुन्दर.

Arvind Mishra ने कहा…

पुनर्पठन से आनंदित हुआ !

Er. सत्यम शिवम ने कहा…

बहुत ही सुंदर भाई........बहुत खूब

बेनामी ने कहा…

Superb blog post, I have book marked this internet site so ideally I’ll see much more on this subject in the foreseeable future!