शरद ॠतु कि अगुवाई में,
पेड़ों के पते सिहर गए,
अकुलाहट के सारे पल गए।
इक सुहानी सुबह,
हौले हौले बहती हवाएँ,
प्रकृति की मधुरता को देख,
पंक्षियों ने सुरीले गीत गाए।
कँपकपाने लगी ठँडक से तन,
नदियों में जल भी जम गए।
शरद ॠतु कि अगुवाई में,
पेड़ों के पते सिहर गए,
मौसम ये बड़ा निराला है,
अब आसमान भी काला है,
झम झम बारिश होने वाली,
शरद ॠतु का ये पाला है।
सब घर में है छिप गए,
जैसे वक्त सारे थम गए।
शरद ॠतु कि अगुवाई में,
पेड़ों के पते सिहर गए,
स्वेटर पहनो,ओढ़ो कम्बल,
घर में अलाव भी गया है जल,
रहना इस मौसम में जरा सम्भल,
ऊनी कपड़े है बस ठंडक का हल।
जल की इक बूँद पड़ी जो तन पर,
हम न जाने क्यों सहम गए।
शरद ॠतु कि अगुवाई में,
पेड़ों के पते सिहर गए,
ठंडक ने ठिठुराया तन को,
अकुलाहट के सारे पल गए।
11 comments:
बहुत अच्छा !
मौसम ये बड़ा निराला है,
अब आसमान भी काला है,
झम झम बारिश होने वाली,
शरद ॠतु का ये पाला है।
भाई अपने को भी ठण्ड का एहसास है ...आपने उसे व्यक्त करके याद दिला दिया कि बच कर रहें ..शुक्रिया सत्यम जी इस सुंदर और समयानुकूल प्रस्तुति के लिए ..शुक्रिया
शिवम भाई, मन को छू गया आपका गीत।
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मिल गया खुशियों का ठिकाना।
वैज्ञानिक पद्धति किसे कहते हैं?
बहुत सुन्दर प्रस्तुति…………बधाई।
बेहद सुन्दर गीत.
इस ठंड में सब सिकुड़ जाते हैं, मन के भाव फैलते रहें।
meri to sahi me tariyat kharab hai ....iss sardi me
इस साल कि सुबह तो ठिठुरन लिए है |बहुत सुन्दर वर्णन किया है| बहुत खूब |
आशा
बहुत बढियां //
जाड़ा वाह
आप सभी को बहुत बहुत धन्यवाद
सुन्दर लेखन!
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