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शुक्रवार, 7 जनवरी 2011

" बातों में गुम ".........ललित कर्मा


दो लड़कियों को देखा

कचरा बीन रही थी,

चार-पांच साल उम्र रही थी,

दोनों की,

वह जा रहा था,

सायकल पर हो सवार,

रोज की तरह,

जब जाता है वह ,

देखता है मकान-दुकान,

गाड़ी-घोड़े, आते-जाते लोग,

सहसा दो ये बालिकाएँ भी दिख पड़ी,

उसने मुझसे पूछा,

तुम्हे कुछ होता है?,

ऐसा देखता है जब,

मैंने कहा - मुझे क्या होगा?

तुझ जैसा मैं भी हूँ,

दो बातें तू कह लेगा,

और उनको चार बना कर,

मैं कह दूंगा,

इन्ही बातों में बच्चियाँ गुम हो जाएगी,

वे बच्चियाँ जो कचरा बीन रही थी|

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4 comments:

shikha varshney ने कहा…

सुन्दर संवेदनशील रचना.

डॉ. दिलबागसिंह विर्क ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
डॉ. दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

karne ke nam per hmare pas sirf bhashan hain .is hkikat ko byan karti sunder kavita .

Unknown ने कहा…

yahi to khubasurat jiwan hai kb kanha kisko kaun sa kam saunp de , har haal me jindagi apana kaam kar rahi hai |