भूख तू बार बार क्यों है आती
रह रह कर मुझे सताती
सोते से मुझे जगाती
विचारों को मेरे झकझोरती
क्या कुछ याद दिलाना चाहती ?
एक दिन न खा सकी
तो रात भर न सो सकी
अब सोचने पर मजबूर
भूखा कोई सो रहा सुदूर
सोचने पर हूँ विवश
लाखों कैसे सो जाते बेबस ?
भूख तो उन्हें भी सताती होगी
क्या पानी भूख मिटाती होगी
खली पेट तो पानी भी नहीं सुहाता
उपाय कोई तो होगा बस पाना है रास्ता
छाणिक चमक धमक हमें लुभाती
और बुध्ही भ्रष्ट हो जाती
फसल तो उगती धरा पर भरपूर
धरा को ही बेच रहे हो लालच में
राजनेता कार्य करें जिसमें हो देश का हित
देश ही सर्वोच्च है यह याद रहे नित
परिवार सिमित रहे यही मेरा सुझाव
नहीं रहेगा देश में कुछ भी आभाव
बालक अब न बिल्खेगा
रोटी को न तरसेगा
सोकर जब उठेगा
नव प्रभात उदय होगा
भूख की मरोड़ का
अब कोई रुदन न होगा
भूख की मरोड़ का
अब कोई रुदन न होगा
2 comments:
akaatya satya hai ye.
सोचने पर हूँ विवश
लाखों कैसे सो जाते बेबस ?
भूख तो उन्हें भी सताती होगी
क्या पानी भूख मिटाती होगी
खली पेट तो पानी भी नहीं सुहाता
उपाय कोई तो होगा बस पाना है रास्ता
बस उस रास्ते का इन्तजार है । आशा की किरण दिखाती कविता। धन्यवाद।
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