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शनिवार, 3 जुलाई 2010

बचपन........कविता............श्यामल सुमन

याद बहुत आती बचपन की।
उमर हुई है जब पचपन की।।

बरगद, पीपल, छोटा पाखर।
जहाँ बैठकर सीखा आखर।।

संभव न था बिजली मिलना।
बहुत सुखद पत्तों का हिलना।।

नहीं बेंच, था फर्श भी कच्चा।
खुशी खुशी पढ़ता था बच्चा।।

खेल कूद और रगड़म रगड़ा।
प्यारा जो था उसी से झगड़ा।।

बोझ नहीं था सर पर कोई।
पुलकित मन रूई की लोई।।

बालू का घर होता अपना।
घर का शेष अभीतक सपना।।

रोज बदलता मौसम जैसे।
क्यों न आता बचपन वैसे।।

बचपन की यादों में खोया।
सु-मन सुमन का फिर से रोया।।