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सोमवार, 7 जून 2010

राह {कविता} सन्तोष कुमार "प्यासा"


जब हम मिले
वो दिन एक था
जहाँ हम मिले
वो जगह एक थी
दोनों की बाते
दोनों के विचार एक थे
जहाँ हमें जाना था
वो मंजिल एक थी
मै तो अब भी वहीँ कायम हूँ
पर अब पता नहीं क्यू
तुमने बदल ली अपनी राह.......................... 

8 comments:

Pramendra Pratap Singh ने कहा…

वाह संतोष जी यह रूप तो पहली बात देखने को मिला, बधाई अच्‍छा लिखते रहे है।

माधव( Madhav) ने कहा…

बहुत सुन्दर

kunwarji's ने कहा…

bahut badhiya....
yahi roop aapka shuddhtam hai....

kunwar ji,

Udan Tashtari ने कहा…

वाह!! बेहतरीन!

मनोज कुमार ने कहा…

लाजवाब!

ravi ने कहा…

ateev sundar

ravi ने कहा…

ateev sundar

Unknown ने कहा…

बहुत खुब..