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बुधवार, 5 मई 2010

शमशान........(कविता)......वंदना

दुनिया के कोलाहल से दूर

चारों तरफ़ फैली है शांति ही शांति

वीरान होकर भी आबाद है जो

अपने कहलाने वालों के अहसास से दूर है जो

नीरसता ही नीरसता है उस ओर

फिर भी मिलता है सुकून उस ओर

ले चल ऐ खुदा मुझे वहां

दुनिया के लिए कहलाता है जो शमशान यहाँ

6 comments:

हिन्दी साहित्य मंच ने कहा…

कम शब्दों में सब कुछ कह दिया आपने ...लेकिन शब्द कुछ कमजोर लगे ..

Unknown ने कहा…

vandna ji bahut hi khubsurat rachna ...badhai

जय हिन्दू जय भारत ने कहा…

ले चल ऐ खुदा मुझे वहां
दुनिया के लिए कहलाता है जो शमशान यहाँ
bahut khub...

Mithilesh dubey ने कहा…

बहुत ही उम्दा रचना ।

दिलीप ने कहा…

bahut sundar...

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत उम्दा....