हमारा प्रयास हिंदी विकास आइये हमारे साथ हिंदी साहित्य मंच पर ..

रविवार, 30 मई 2010

अस्पताल बीमार..................श्यामल सुमन

पैरों की तकलीफ से वो चलती बेहाल।
किसी ने पीछे से कहा क्या मतवाली चाल।।

बी०पी०एल० की बात कम आई०पी०एल० का शोर।
रोटी को पैसा नहीं रन से पैसा जोड़।।

दवा नहीं कोई मिले डाक्टर हुए फरार।
अब बीमार जाए कहाँ अस्पताल बीमार।।

भूल गया मैं भूल से बहुत बड़ी है भूल।
जो विवेक पढ़कर मिला वही दुखों का मूल।।

गला काटकर प्रेम से बन जाते हैं मित्र।
मूल्य गला है बर्फ सा यही जगत का चित्र।।

बातों बातों में बने तब बनती है बात।
फँसे कलह के चक्र में दिखलाये औकात।।

सोने की चाहत जिसे वह सोने से दूर।
मधुकर सुमन के पास तो होगा मिलन जरूर।।

4 comments:

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

श्यामल जी आपकी इस रचना ने मुझे अपने स्कूल के दिनों की याद दिला दी जब मैंने अपने एक दोस्त को थप्पड़ मार दिया था , हुआ योंकि कॉलेज में पीरिओद ख़त्म होने के बाद हम उसके घर में बैठी थे , सामने सड़क थी ! हम लोग गपशप कर रहे थे कि सामने सड़क पर एक पैर से अपाहिज लडकी को जाते देख उसने वह गाना गाना शुरू कर दिया - धीरे रे चलों मेरी लंगडी बंदरिया , मैं ठहरा सोर्ट टेम्पर सो जड़ दिया एक .

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

खैर , आपकी रचना बहुत सुन्दर है !

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत सही!!!! :)

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

bahut sunder rachna.