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रविवार, 16 मई 2010

नव जीवन ********* {कविता} ********** सन्तोष कुमार "प्यासा"

ओर से छोर तक बादलों का विस्तार


ललित फलित मनभावन संसार


गूँज रहा दिग-दिगंत तक कोयल का मधुर स्वर


बह रही दसो दिशाओं में खुशियों की लहर


हो रहा आनंद का उदगम, ये अदभुत क्षण है अनुपम


आशाओं के गगन से सुधा रही बरस


तृप्त हुए सभी, चख कर ये सरस रस


टूट रहा जाति, पाति का झूठा भ्रम


उदित हुआ सूर्य लेकर नव जीवन

 
सौहार्द की बूंदों में, मिलकर भीगे हम

4 comments:

honesty project democracy ने कहा…

बहुत ही सार्थक प्रेरक प्रस्तुती के लिए धन्यवाद /

दिलीप ने कहा…

bahut sundar

समय चक्र ने कहा…

ओर से छोर तक बादलों का विस्तार
ललित फलित मनभावन संसार
गूँज रहा दिग-दिगंत तक कोयल का मधुर स्वर
बह रही दसो दिशाओं में खुशियों की लहर


बहुत बढ़िया पंक्तियाँ लगी..उम्दा

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

आशाओं के गगन से सुधा रही बरस


तृप्त हुए सभी, चख कर ये सरस रस


टूट रहा जाति, पाति का झूठा भ्रम


उदित हुआ सूर्य लेकर नव जीवन


काश ये भेम सच में ही टूटे ...बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति