हमारा प्रयास हिंदी विकास आइये हमारे साथ हिंदी साहित्य मंच पर ..

बुधवार, 30 दिसंबर 2009

फिर एक बार ///कविता

फिर एक बार
_________

आओ....
बदल डालें दीवार पर
लटके कलेन्डर
फिर एक बार,

इस आशा के साथ
कि-
शायद इसबार हमें भी मिलेगा
अफसर का सद व्यवहार
नेता जी का प्यार
किसी अपने के द्वारा
नव वर्ष उपहार.

सारे विरोधियों की
कुर्सियां हिल जाऐं
मलाईदार कुर्सी
अपने को मिल जाऐ.

सुरसा सी मँहगाई
रोक के क्या होगा ?
चुनावी मुद्दा है
अपना भला होगा .

जनता की क्यों सोचें ?
उसको तो पिसना है
लहू बन पसीना
बूँद-बूँद रिसना है

रिसने दो, देश-हित में
बहुत ही जरूरी है
इसके बिन सब
प्रगति अधूरी है.

प्रगति के पथ में
एक साल जोड दो
विकास का रथ लाकर
मेरे घर पे छोड दो.

बदल दो कलेन्डर
फिर एक बार
आगत का स्वागत
विगत को प्रणाम
फिर एक बार......!!


डॉ.योगेन्द्र मणि

हिन्दी साहित्य मंच लाया " चौथी कविता प्रतियोगिता " .....................भागीदारी कर जीतिये इनाम

हिन्दी साहित्य मंच "चतुर्थ कविता प्रतियोगिता" मार्च माह में आयोजित कर रहा है। इस कविता प्रतियोगिता के लिए किसी विषय का निर्धारण नहीं किया गया है अतः साहित्यप्रेमी स्वइच्छा से किसी भी विषय पर अपनी रचना भेज सकते हैं । रचना आपकी स्वरचित होना अनिवार्य है । आपकी रचना हमें फरवरी माह के अन्तिम दिन तक मिल जानी चाहिए । इसके बाद आयी हुई रचना स्वीकार नहीं की जायेगी ।आप अपनी रचना हमें " यूनिकोड या क्रूर्तिदेव " फांट में ही भेंजें । आप सभी से यह अनुरोध है कि मात्र एक ही रचना हमें कविता प्रतियोगिता हेतु भेजें ।

प्रथम द्वितीय एवं तृतीय स्थान पर आने वाली रचना को पुरस्कृत किया जायेगा । दो रचना को सांत्वना पुरस्कार दिया जायेगा ।

प्रथम पुरस्कार - रूपये एक हजार , द्वितीय पुरस्कार - रूपये पांच सौ , तृतीय पुरस्कार - रूपये तीन सौ । साथ ही दो कविता को हिन्दी साहित्य मंच की तरफ से सांत्वना पुरस्कार दिया जायेगा । हिन्दी साहित्य मंच की तरफ से एक प्रशस्ति - पत्र भी प्रदान किया जायेगा


सर्वश्रेष्ठ कविता का चयन हमारे निर्णायक मण्डल द्वारा किया जायेगा । जो सभी को मान्य होगा ।आइये इस प्रयास को सफल बनायें । हमारे इस पते पर अपनी रचना भेजें -
hindisahityamanch@gmail.com .आप हमारे इस नं पर संपर्क कर सकते हैं- 09818837469,09891584813,

हिन्दी साहित्य मंच एक प्रयास कर रहा है राष्ट्रभाषा " हिन्दी " के लिए । आप सब इस प्रयास में अपनी भागीगारी कर इस प्रयास को सफल बनायें । आइये हमारे साथ हिन्दी साहित्य मंच पर । हिन्दी का एक विरवा लगाये जिससे आने वाले समय में एक हिन्दीभाषी राष्ट्र की कल्पना को साकार रूप दे सकें ।


संचालक
हिन्दी साहित्य मंच
नई दिल्ली

शाम

शाम की छाई हुई धुंधली


चादर से

ढ़क जाती हैं मेरी यादें ,

बेचैन हो उठता है मन,

मैं ढ़ूढ़ता हूँ तुमको ,

उन जगहों पर ,

जहां कभी तुम चुपके-चुपके मिलने आती थी ,

बैठकर वहां मैं

महसूस करना चाहता हूँ तुमको ,

हवाओं के झोंकों में ,

महसूस करना चाहता हूँ तुम्हारी खुशबू को ,

देखकर उस रास्ते को

सुनना चाहता हूँ तुम्हारे पायलों की झंकार को ,

और

देखना चाहता हूँ

टुपट्टे की आड़ में शर्माता तुम्हारा वो लाल चेहरा ,

देर तक बैठ

मैं निराश होता हूँ ,

परेशान होता हूँ कभी कभी ,

आखें तरस खाकर मुझपे,

यादें बनकर आंसू उतरती है गालों पर ,

मैं खामोशी से हाथ बढ़ाकर ,

थाम लेता हूं उन्हें टूटने से ,

इन्ही आंसूओं नें मुझे बचाया है टूटने से ,

फिर मैं उठता हूं

फीकी मुस्कान लिये

एक नयी शुरूआत करने ।


प्रस्तुति-
नीशू

मंगलवार, 29 दिसंबर 2009

शान्ता क्लोज़

शान्ता क्लोज़ ने
दरवाजा खटटाया
छुट्टी के दिन भी सुबह-सुबह
आठ बजे ही आ जगाया
बोला
आँख फाडकर क्या देखता है
मुझे पहिचान
जो भी चाहिऐ माँग .

हम बडबडाऐ-
सुबह-सुबह क्यों दिल्लगी करते हो
किसी दूसरे दरवाजे पर जाओ
सरकारी छुट्टी है ,सोने दो
तुम भी घर जाकर सो जाओ.
वह हमारी समझदारी पर मुस्कराया
पुनः आग्रह भरी निगाहों का
तीर चलाया।

हामने भी सोच -
चलो आजमाते हैं
बाबा कितने पानी में
पता लगाते हैं.

हम बोले -
बाबा, हमारा ट्रान्सफर
केंसिल कर दो
मंत्री जी के कान में
कोई ऐसा मंत्र भर दो
जिससे उनको लगे
हम उनके वफादार हैं
सरकार के सच्चे पहरेदार हैं.

वो मुस्कराया-
यह तो राजनैतिक मामला है
हम राजनीती में टांग
नहीं फसाते
नेताओं की तरह
चुनावी आश्वासन
नही खिलाते
कुछ और माँगो.

हम बोले ठीक है-
बेटे की नौकरी लगवादो
घर में जवान बेटी है
बिना दहेज के
सस्ता सुन्दर टिकाऊ
दामाद दिलवादो
मंहगाई की धार
जेब को चीरकर
सीने के आरपार
हुई जाती है
धनिया के पेट की
बलखाति आँतों को
छिपाने की कोशिश में
तार-तार हुई कमीज भी
शरमाती है
नरेगा योजना में
उसका नाम भी है
रोजगार भी है
भुगतन भी होता है
लेकिन उसकी मेहनत का
पूरा भुगतान
उसकी जेब तक पहुँचा दो.


वृद्धाश्रमों की चोखट पर
जीवन के अंतिम पडाव की
इन्तजार में
आँसू बहाते
बूढे माँ-बाप की औलादों के
सीने में
थोडा सा प्यार जगा दो

एक दिन चाकलेट खिलाकर
बच्चों को क्या बहलाते हो
मुफ्त में सोई इच्छाओं को
क्यों जगाते हो ?

वह सकपकाया-
सब कुछ समझते हुऐ भी
कुछ नहीं समझ पाया

लेकिन हम समझ गये-
यह भी किसी संभ्रांत पति की
तरह लाचार है
या मेरे
जावान बेटे की तरह
बेरोजगार है
हो सकता है
यह भी हो
मेरे देश की तरह
महामारी का शिकार
या फिर इसकी झोली को
मिलें हों सीमित अधिकार.

वैसे भी हमारा देश
त्योहारों का देश है
पेट भरा हो या खाली
कितनी भी भारी हो
जेबों पर कंगाली
हर त्योहार देश की शान है
मेरा देश शायद
इसीलिऐ महान है ॥


डॉ. योगेन्द्र मणि

सोमवार, 28 दिसंबर 2009

कोपेनहेगन वार्ता का दुःखद अंत

अंततः जलवायु परिवर्तन पर कोपेनहेगन वार्ता का दुःखद अंत हो चुका है। डेनमार्क की राजधानी कोपेनहेगन के बेला सेंन्टर में चले 12 दिन की लंबी बातचीत दुनिया के आशाओं पर बेनतीजा ही रही। कोपेनहेगन सम्मेलन में बातचीत के लिए जुटे 192 देशों के नेताओं के तौर-तरीकों से यह कतई नहीं लगा कि वे पृथ्वी के भविष्य को लेकर चिंतित हैं। दुनियाँ के कई बड़े नेताओं ने बेशर्मी के साथ घोषणा की कि ‘यह प्रक्रिया की शुरुआत है, न की अंत’। 192 देशों के नेता किसी सामुहिक नतीजे पर नहीं पहुँच सके, झूठी सदिच्छाओं के गुब्बारे के गुब्बार तो बनाए गए, पर किसी ठोस कदम की बात कहीं नहीं आई। कोपेनहेगन सम्मेलन मात्र एक गर्मागर्म बहस बनकर खत्म हो चुकी है।

कोपेनहेगन की शुरुआत ही जिन बिन्दुओं पर होनी थी, वह विकसित देशों के अनुकूल नहीं थी। कार्बन उत्सर्जन में कानूनी रूप से अधिक कटौती का वचनबद्धता, कार्बन उत्सर्जन के प्रभावी रोकथाम के लिए एक निश्चित समय सीमा की प्रतिबद्धता, कार्बन उत्सर्जन में 1990 के स्तर से औसत 5 प्रतिशत तक कटौती आदि ऐसे मुद्दे थे जिनपर विकसित देश किसी भी स्थिती में तैयार नहीं होने वाले थे।

कोपेनहेगन में जलवायु परिवर्तन के मसले पर ‘सार्थक समझौते’ की निरर्थकता इसी बात से साबित हो जाती है कि सार्थक समझौते में गिनती के 28-30 देश ही शामिल हैं। बाकी देश इसे पूरी तरह खारिज कर चुके हैं। 18 दिसंबर को ही कोपेनहेगन की असफलता साफ नजर आ गयी थी, जब एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला शुरु हुआ। दुनिया भर से आईं वरिष्ठ हस्तियां एक दूसरे पर दोषारोपण कर रही थीं।

130 विकासशील देशों के समूह जी77 ने ओबामा पर आरोप लगाया कि, “ओबामा ने अमरीका के लिए कार्बन उत्सर्जन को कम करने की बात से इंकार करके गरीब देशों को हमेशा के लिए गरीबी में ढकेल दिया है।” एक प्रवक्ता ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि कोपेनहेगन की असफलता जलवायु परिवर्तन के इतिहास में सबसे बुरी घटना है।

कोपेनहेगन में जलवायु परिवर्तन के मसले पर ‘सार्थक समझौते’ की निरर्थकता इसी बात से साबित हो जाती है कि सार्थक समझौते में गिनती के 28-30 देश ही शामिल हैं। बाकी देश इसे पूरी तरह खारिज कर चुके हैं। 18 दिसंबर को ही कोपेनहेगन की असफलता साफ नजर आ गयी थी, जब एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला शुरु हुआ। दुनिया भर से आईं वरिष्ठ हस्तियां एक दूसरे पर दोषारोपण कर रही थीं। पाबलो सोलोन, संयुक्त राष्ट्र के बोलिवियन राजदूत ने मेजबान डेनमार्क पर आरोप लगाते हुए कहा कि ‘उंहोंने दुनिया के नेताओं के आगे मसौदा रखने से पहले मात्र कुछ देशों के समूह को ही तैयार करने के लिए दे दिया। यह कैसे हो सकता है कि 190 देशों को दर किनार करके मात्र 25-30 देश अपनी ही खिचड़ी पकाकर बाकी देशों को परोस दें। इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता।‘

लेकिन दूसरी ओर अमीर देशों ने अपने पक्ष को मजबूत करते हुआ कहा कि विकासशील देशों ने एक ठोस बातचीत की बजाय प्रकिया पर ज्यादा वक्त जाया किया है।

वार्ता के तुरंत बाद हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ब्राउन ने कहा, कि यह तो बस एक पहला कदम है, इसे कानूनी रूप से बाध्यकारी बनाने से पहले बहुत से कार्य किए जाने हैं। एक सवाल का जवाब देते हुए उंहोंने इसे ऐतिहासिक कॉन्फ्रेंस मानने से भी इंकार कर दिया। ओबामा भी विश्व नेताओं के सामने काफी विचलित से दिख रहे थे। हालांकि अमरीका से हिलेरी क्लिंटन ने घोषणा की थी कि अमरीका विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन की समस्या से निपटने के लिए 100 बिलियन डॉलर की मदद करेगा लेकिन ओबामा ने गरीब देशों को सहायता मुहैया कराने और कार्बन उत्सर्जन में कमीं करने का कोई दावा नही किया।

अपनी बातचीत में ओबामा ने यह तो कहा कि अमरीका क्लीन एजेंडा अपनाएगा। लेकिन विकासशील देश इस बात से निराश थे कि ये सब कहने के लिए हैं लिखित रूप से कोई भी दावा नहीं किया गया। इतना ही नहीं, जिस जलवायु परिवर्तन संबंधी कानून के लिए पर्यावरणीय संगठन कईं महीनों से मांग कर रहे थे उंहोंने सीनेट को कोई कानून बनाने के लिए दबाव नहीं डाला।

मसौदे में यह सदिच्छा तो है कि ग्लोबल वार्मिंग को 2 डिग्री की सीमा पर ले आना चाहिए लेकिन इसमें कोई कानूनी बाध्यता नहीं रखी गई। मसौदे को तैयार करने वाले ब्राउन सहित सभी 28 देशों ने आज सवेरे वार्ता को अगले साल दिसम्बर 2010 तक के लिए स्थगित करने का प्रस्ताव रखा जब तक संयुक्त राष्ट्र की मेक्सिको में जलवायु परिवर्तन पर अगली बैठक नहीं हो जाती।

लेकिन कोपेनहेगन से जो मसौदा सामने आया है वह न केवल दुनिया में शक्ति संतुलन सुनिश्चित कर सकता था बल्कि भावी पीढ़ियों का भविष्य भी निर्धारित कर सकता था। लेकिन यह समझौता बिना किसी ठोस निष्कर्ष के फ्लॉप हो गया। कोपेनहेगन वार्ता निम्न बिंदुओं पर फ्लॉप हो गईः

तापमान : "ग्लोबल तापमान में वृद्धि 2 डिग्री से कम होनी चाहिए।"

इससे 100 से भी ज्यादा देश निराश हो गए जो तापमान में अधिकतम 1.5 डिग्री की कमीं चाहते थे, इसमें वे सभी छोटे-छोटे द्वीपीय देश भी शामिल हैं जो इस बात से भयभीत हैं कि इस लेवेल पर भी उनके घर डूब ही जाएंगे।

कार्बन उत्सर्जन के लिए समय सीमा

"हमें वैश्विक और राष्ट्रीय उत्सर्जन की सीमा को जल्द से जल्द पाने के लिए के लिए सहयोग करना चाहिए, इस बात को ध्यान में रखते हुए कि विकासशील देशों में यह समय ज्यादा लग सकता है…" इस वक्तव्य से वे देश निराश हो गए जो कार्बन उत्सर्जन के लिए एक तिथि निर्धारित करना चाहते थे।

"सभी पक्ष इस बात का वादा करते हैं कि वे व्यक्तिगत रूप से या मिलकर 2020 तक तार्किक रूप से कार्बन उत्सर्जन लक्ष्य में कटौती करेंगे। "

इस तथ्य के अनुसार विकसित देशों को अपने मध्यकालीन लक्ष्य तक तुरंत पहुंचने के लिए अभी से काम शुरु करना होगा। अमरीका को 2005 के स्तर पर 14-17फीसदी कमीं करनी होगी, यूरोपीय संघ को 1990 के स्तर पर 20-30फीसदी, जापान को 25 और रूस को 15-25फीसदी की कटौती करनी होगी।

"वनों की कटाई को रोकने, अनुकूलन, प्रौद्योगिकी विकास और हस्तांतरण और क्षमता के लिए पर्याप्त वित्त का मामला"

यह बहुत ही जटिल है क्योंकि 15 फीसदी से भी ज्यादा कार्बन उत्सर्जन के लिए पेड़ों के कटाव को जिम्मेदार माना गया है। वार्ता में शामिल समूहों का मानना है कि इस तर्क में सुरक्षा मानकों की कमीं है।

पूंजी: "विकसित देशों ने एक साथ मिलकर यह वादा किया है कि 2010-12 तक 30 बिलियन तक की कीमत वाले नए और अतिरिक्त संसाधनों को मुहैया कराएंगे.... विकसित देशों ने लक्ष्य निर्धारित किया है कि विकासशील देशों की जरूरतों को पूरा करने के लिए वे सब मिलकर 2020 तक प्रतिवर्ष 100 बिलियन डॉलर इकट्ठा करेंगे।"

हालांकि अमीर देशों नें विकासशील देशों के प्रयासों के लिए शीघ्र आर्थिक सहयोग देने की बात कही है। दीर्घकाल में, बड़ा फंड कोपेनहेगन ग्रीन क्लाइमेट फंड में जाएगा। लेकिन समझौते में कहीं भी यह नहीं कहा गया है कि यह फंड कहां से आएगा, और इसका इस्तेमाल कैसे होगा।

वार्ता में दरकिनार किए गए पूर्व मसौदे के मुख्य तत्व:


वार्ता में क्योटो को परिवर्तित करने का प्रयास किया गया है। क्योटो का साफ कहना था कि "हमारा दृढ़ निश्चय है जलवायु परिवर्तन पर एक या अधिक नए कानूनी साधनों को अपनाना होगा…"। दरअसल यह प्रस्तावना ही अमार देशों के वार्ताकारों के सामने सबसे बड़ी बाधा थी। इससे यह सवाल खड़ा हुआ कि क्योटो प्रक्रिया को बरकरार रखा जाए या नहीं।

सब जानते हैं कि संधि के लिए डेडलाइन की बात का काफी गंभीर मतलब है, लेकिन मसौदे के अंतिम रूप में इस तय समय सीमा को छोड़ दिया गया और कहा गया कि यह अगले साल होगा।

हसरतों को पंख मिलने के उम्मीद में लोग कोपेनहेगन सम्मेलन को होपेनहेगन नाम से बुला रहे थे, पर अब लोग बहुत बूरी तरह गुस्से में और दुखी हैं। जब कई देशों के नेता कोपेनहेगन से रवाना हो रहे थे, तो ब्रिटेन के ग्रीनपीस के कार्यकारी निदेशक जॉन सॉवेन ने बीबीसी से कहा कि कोपेनहेगन एक ऐसी अपराधभूमि की तरह लग रहा है जहाँ से अपराधी स्त्री-पुरुष एयरपोर्ट की ओर रवाना हो रहे हैं। (इंडिया वाटर पोर्टल हिन्दी)

प्रस्तुति

naiazadi

रविवार, 27 दिसंबर 2009

शान्ता क्लोज़

शान्ता क्लोज़ ने
दरवाजा खटटाया
छुट्टी के दिन भी सुबह-सुबह
आठ बजे ही आ जगाया
बोला
आँख फाडकर क्या देखता है
मुझे पहिचान
जो भी चाहिऐ माँग .

हम बडबडाऐ-
सुबह-सुबह क्यों दिल्लगी करते हो
किसी दूसरे दरवाजे पर जाओ
सरकारी छुट्टी है ,सोने दो
तुम भी घर जाकर सो जाओ.
वह हमारी समझदारी पर मुस्कराया
पुनः आग्रह भरी निगाहों का
तीर चलाया।

हामने भी सोच -
चलो आजमाते हैं
बाबा कितने पानी में
पता लगाते हैं.

हम बोले -
बाबा, हमारा ट्रान्सफर
केंसिल कर दो
मंत्री जी के कान में
कोई ऐसा मंत्र भर दो
जिससे उनको लगे
हम उनके वफादार हैं
सरकार के सच्चे पहरेदार हैं.

वो मुस्कराया-
यह तो राजनैतिक मामला है
हम राजनीती में टांग
नहीं फसाते
नेताओं की तरह
चुनावी आश्वासन
नही खिलाते
कुछ और माँगो.

हम बोले ठीक है-
बेटे की नौकरी लगवादो
घर में जवान बेटी है
बिना दहेज के
सस्ता सुन्दर टिकाऊ
दामाद दिलवादो
मंहगाई की धार
जेब को चीरकर
सीने के आरपार
हुई जाती है
धनिया के पेट की
बलखाति आँतों को
छिपाने की कोशिश में
तार-तार हुई कमीज भी
शरमाती है
नरेगा योजना में
उसका नाम भी है
रोजगार भी है
भुगतन भी होता है
लेकिन उसकी मेहनत का
पूरा भुगतान
उसकी जेब तक पहुँचा दो.


वृद्धाश्रमों की चोखट पर
जीवन के अंतिम पडाव की
इन्तजार में
आँसू बहाते
बूढे माँ-बाप की औलादों के
सीने में
थोडा सा प्यार जगा दो

एक दिन चाकलेट खिलाकर
बच्चों को क्या बहलाते हो
मुफ्त में सोई इच्छाओं को
क्यों जगाते हो ?

वह सकपकाया-
सब कुछ समझते हुऐ भी
कुछ नहीं समझ पाया

लेकिन हम समझ गये-
यह भी किसी संभ्रांत पति की
तरह लाचार है
या मेरे
जावान बेटे की तरह
बेरोजगार है
हो सकता है
यह भी हो
मेरे देश की तरह
महामारी का शिकार
या फिर इसकी झोली को
मिलें हों सीमित अधिकार.

वैसे भी हमारा देश
त्योहारों का देश है
पेट भरा हो या खाली
कितनी भी भारी हो
जेबों पर कंगाली
हर त्योहार देश की शान है
मेरा देश शायद
इसीलिऐ महान है ॥


डॉ. योगेन्द्र मणि

शनिवार, 26 दिसंबर 2009

भारत भूमि वही अनुरागी ------ (डा श्याम गुप्त)

१.
जन्म मिले यदि मानव का ,तो भारत भूमि वही अनुरागी |
पुत्र बढे नेता का बनूँ ,निज खातिर देश की चिंता हो त्यागी |
पाहन ऊंचे 'मौल' सजूँ , नित माया के दर्शन पाऊँ सुभागी |
जो पशु हों तौ श्वान वही ,मिले कोठी औ कार रहूँ बड़भागी |
काठ बनूँ तौ बनूँ कुरसी , मिल जाए मुराद मिले मन माँगी |
श्याम जिसे ठुकराऊ मिले, फांसी या जेल सदा को हो दागी |


२.
वाहन हों तौ हीरो-होंडा, चलें वाल-युवा सब ही सुखरासी |
वास रहे दिल्ली बेंगलूर,न चाहूँ अयोध्या मथुरा न काशी |
नौकरी प्रथम क्लास मिले,हो सत्ता के मद में चूर नशा सी |
पत्नी मिले जो संभाले दोऊ,घर,नौकरी बात न टाले जरासी |
श्याम मिले बंगला गाडी, औ दान दहेज़ प्रचुर धनराशी |
जो कवि हों तौ बसों लखनऊ,हर्षाए गीत-अगीत विधा सी ||

बुधवार, 23 दिसंबर 2009

जब रुखसते मुकाम हो

ऐ हसीं ता ज़िंदगी ओठों पै तेरा नाम हो |
पहलू में कायनात हो उसपे लिखा तेरा नाम हो |


ता उम्र मैं पीता रहूँ यारव वो मय तेरे हुश्न की,
हो हसीं रुखसत का दिन बाहों में तू हो जाम हो |


जाम तेरे वस्ल का और नूर उसके शबाब का,
उम्र भर छलका रहे यूंही ज़िंदगी की शाम हो |


नगमे तुम्हारे प्यार के और सिज़दा रब के नाम का,
पढ़ता रहूँ झुकता रहूँ यही ज़िंदगी का मुकाम हो |


चर्चे तेरे ज़लवों के हों और ज़लवा रब के नाम का,
सदके भी हों सज़दे भी हों यूही ज़िंदगी ये तमाम हो |


या रब तेरी दुनिया में क्या एसा भी कोई तौर है,
पीता रहूँ , ज़न्नत मिले जब रुखसते मुकाम हो |


है इब्तिदा , रुखसत के दिन ओठों पै तेरा नाम हो,
हाथ में कागज़-कलम स्याही से लिखा 'श्याम' हो ||


प्रस्तुति--- ड‍ा० श्याम गुप्ता

मंगलवार, 22 दिसंबर 2009

" ध्वज "महत्व और मान्यता -----(मिथिलेश दुबे)

सनातन भारतीय संस्कृति प्रतिको की संस्कृति मानी जाती है । इसके चिन्हों एवं प्रतिको के अर्थ गुहा , रहस्यपूर्ण एँव वैज्ञानिक हैं । प्रतीकों के तातपर्य बड़े ही रोचक एंव अनोखे होते हैं ।, इनका आशय न संमझ में आंने के कारण ही हमें ये बेढब और अटपटे लगते हैं । प्रतीकों के इसी क्रम में पताका , धव्ज या केतु को यश , प्रतिष्ठा तथा आस्था का प्रतीक माना जाता है । अपने यहाँ ध्वज का महत्व वैदिककाल से है । राजा के लिए ध्वज शौर्य , सर्वस्य एंव राज्योत्कर्ष का प्रतिक है ,। धर्मायतनों में लहराती-फहराती हुई पताकाएं अलग-अलग आस्था और आस्तिकता की परिचायक होती हैं । ध्वज जातीय ऊँचाईयो का प्रतिक है , जो अंनत आकाश में अपनी उत्कृष्ठता का उद्घोष करता है । ध्वज में पट का वर्ण , अकार और अंकित प्रतीक किसी महत् अभिप्राय को अंतर्हित किए होते हैं । ध्वज का उदभव् मूलतः धर्म एंव राजनीति के लिए हुआ । धार्मिक मान्यताओं में प्रार्थना-अभ्यर्थना हेतु तथा राजनीति में युद्ध-क्षेत्र में इसका प्रयोग हुआ । विश्व के सबसे प्राचिन ग्रंथ ऋगवेद में ध्वज का उल्लेख मिलता है



अस्माकमिन्द्र्हा समृतेषु धव्जेष्वस्माकं

या इषवस्ता जयन्तु ।

अस्माकं वीरा उत्तरे भवन्त्वस्माँ
उ देवा अवता हवेषु ।।



यहाँ पर धव्ज और विजयी वाणों की सन्नद्धता के साथ जिस प्रकार देव सहयोग की प्रार्थना करते हुए युद्ध भूमि में वीरो को अपनी पताका फहराते हुए प्रस्तुत होने का चित्रण किया गया है , उससे उनके अद्भुत धौर्य, साहस का सहज परिचय मिलता है ।

अथर्वेद तो जागरण का शंख फूँकते हुए पताकाओं सहित युद्ध में कुद पड़ने और सर्प जैसे कुटिल तथा राक्षसों के समान क्रूर शत्रुओं पर धावा बोल देने का आह्वान करता है-



उत्तिषठता सं सह्वाध्वमुदाराः केतुभिः सह ।
सर्पा इतरजना रक्षांस्यमित्राननु धावत ।।



पताकाओं को व्यक्तित्व का अलंकरण और तेजस्वी का तेज माना जाता है । सभी देवशक्तियों की अपनी पताकाएँ होती है। सूर्य की पताकाएँ उसकी किरणें होती हैं , जिन के अधार पर वह विश्व को उद्भाभाषित करते हुए शोभित होता है । यजुर्वेद के एक मंत्र में यह तथ्य प्रतिपादित होता है --



उदु त्यं जातवेदसं देंव वहन्ति केतवः ।
दृशे विश्वाय सूर्यम् ।



परव्रति साहित्य से स्पष्ट होता है कि पताकाओं में बहुमूल्य कपड़ो का प्रयोग किया जाता था । कालिदास ने चीनांदुक के उल्लेख द्वारा सुँदर रेशमी कपड़ो के प्रयोग का उल्लेख किया है । महाभारत में अनेकों रंगो कओ पताकाओ का परिचय मिलता है । पताकाओं में इन रंगो का विशिष्ट महत्व होता है । ये किसी विशेष वस्तु के प्रतीक के रुप में अपनायी जाती थी । मुख्य रुप से लाल रंग की पताकाओं का प्रतिपादनन है । कुछ पताकाएँ रजतवर्णी भी होती थी । कैकेय राजकुमारों की पताकाएँ भी रक्तवर्णी थीं ।

वीरों के रथो के ध्वंजो के प्रतीकार्थ भिन्न-भिन्न होते हैं । इस संदर्भ मे शल्य के ध्वज पर हल से भूमी पर खींची गई रेखा का चिन्ह था । जयद्रथ के ध्वज में चाँदी का बना हुआ वाराह विद्दमान ता । शल का ध्वज चाँदी के महान गजराज तथा विचित्र अँगो वाला वाले मयूरों से शोभित था । दारुक का छोटा भाई जिस रथ को लाया और जिस पर सात्यार्क आरुढ़ था उसके ध्वज मेम सिंह का निशान चमकता था । महाप्रतापी भीष्म के विसाल ध्वज पर पाँच तारो कर साथ ताड़ का वृक्ष अंकित था । एक स्थान पर उनका रथ उनका रथ ताल चिन्हित चंचल पताकाओं वाला बनाया गया है । बलराम की पताका में भी ताड़वृक्ष अंकित था । महाभारत के एक अन्य योद्दा धृष्टद्दुम्न के स्वर्णभूषित में जो ध्वजा फहराती थी , उमसें कचनार का वृक्ष अंकित था । पुरुषोत्तम राम के भ्राता भरत के धव्ज मे भी कचनार की आकृति का उललेख मिलता है । यही प्रतिक लक्षमण पुत्त चंद्रकेतु की पताका में भी विद्दमान था । इस तरह वीरों की पताकाओं में अलग-अलग आभाओं और चिन्हो के उल्लेख मिलते है और इन सभी के अपने-हपने विशिष्ट अभिप्राय होमग । पताकाओ के इन प्रतिकों को आधुनिक काल में भी उतनी ही प्रतिष्ठा और सम्मान प्राप्त है , क्योंकि हर जाती , संस्था , वर्ग समाज , प्रतिष्ठान , सेनाओं की अपनी-अपनी टुकडीयों तथा देशों के हपने प्रतीकरूपी ध्वज होते हैं । इन सभी को पूर्ण सम्मान दिया जाता है ।


खेल स्काउट एंव गाइड , एन सी सी आदि प्रतिष्ठिनों में तो ध्वजा को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है । भारतीय स्वतंत्रा आंदोलन के क्रान्तकारियों के लिए तिरंगा प्राणो से भी बढ़कर था । समरांगण में पताकाओ का कट जाना अनिष्टक एंव झुक जाना अमंगलकारी माना जाता है । प्राणोत्सर्ग करते हुए भी योद्धा अपनी पताका की रक्षा करते हैं । आज भी इसकी सर्वाधिक आवश्यकता है। अपने तिरंगे पर अनगिनत देशों की गिद्धदृष्टि लगी हुई है । आज आंतक एंव कूटनीति से साये में इसकी प्रतिष्ठा खतरे में पड़ गयी है । ऐसे में भारतीय रणबांकुरो का आह्वान है कि वे अपने राष्ट्र के सर्वोच्च सम्मान के प्रतिक तिरंगे की रक्षा के लिए आगे आएँ ,। समाज एवं राष्ट्र के विकास में सहायक होकर ही इसके प्रति सच्चा आदर एंव सम्मान दिया जा सकता है ।

सोमवार, 21 दिसंबर 2009

मान व अहम् -------(डा० श्याम गुप्त .)

तुम पुरुष अहम् के हो सुमेरु ,
मैं नारी आन की प्रतिमा हूँ |
तुम पुरुष दंभ के परिचायक ,
मैं सहज मान की गरिमा हूँ |



मैं परम शक्ति, तुम परम तत्व,
तुम व्यक्त भाव मैं व्यक्त शक्ति |
तुमको फिर रूप-दंभ कैसा,
तुम बद्ध जीव मैं सदा मुक्त |



जिस माया में तुम बंध जाते,
मैं ही वो माया बंधन हूँ. |
तुम जीव बने हर्षाते हो ,
मैं ही जीवन स्पंदन हूँ. |



तुम मुझे मान जब देते हो,
बन शक्ति-पराक्रम हरषाऊँ |
तुम मेरी आन का मान रखो,
जीवन का अनुक्रम बनजाऊँ |



तुम मेरे मान का मान धरो,
मैं पुरुष अहम् पर इठलाऊँ |
तुम मेरी गरिमा पहचानो,
मैं सृष्टि-क्रम बनी हरषाऊँ ||



बन पूरक एक दूसरे के,
इक दूजे का सम्मान करें |
तुम मेरे मान की सीमा हो ,
मैं पुरुष अहम् की गरिमा हूँ ||

रविवार, 20 दिसंबर 2009

फिर होगी अगले बरस मुलाकात

उनकी एक झलक पाने की ख़ातिर


हम नैन बिछाए रहते हैं,


न जाने कब वो आ जाएं


इस कारण एक आँख राह में


और दूजा काम में टिकाए रखते हैं,


इंतज़ार ख़त्म हुआ


उनका दीदार हुआ,


सोचा था जब वो मिलेंगे हमसे


दिल की बात बयाँ करेंगे,


अपने सारे जज़बात उनको बता देंगे,


हाय ये क्या गजब हुआ


जो सोचा था उसका विपरीत हुआ,


वो आए..थोड़ा सा मुस्कुराए


और कह दी उन्होने ऐसी बात


जिससे दिल को हुआ आघात,


कहा उस ज़ालिम ने


मेरा हमदम है कोई और,


मेरी मंज़िल है कोई और


बस कहने आयी थी दिल की बात


फिर होगी अगले बरस मुलाकात ।।

शनिवार, 19 दिसंबर 2009

यार पुराने छूट गए तो छूट गए ---(जतिन्दर परवाज़ )

यार पुराने छूट गए तो छूट गए

कांच के बर्तन टूट गए तो टूट गए

सोच समझ कर होंट हिलाने पड़ते हैं

तीर कमाँ से छूट गए तो छूट गए

शहज़ादे के खेल खिलोने थोड़ी थे

मेरे सपने टूट गए तो टूट गए

इस बस्ती में कौन किसी का दुख रोये

भाग किसी के फूट गए तो फूट गए

छोड़ो रोना धोना रिष्ते नातों पर

कच्चे धागे टूट गए तो टूट गए

अब के बिछड़े तो मर जाएंगे ‘परवाज़’

हाथ अगर अब छूट गए तो छूट गए

---(जतिन्दर परवाज़ )

यार पुराने छूट गए तो छूट गए

कांच के बर्तन टूट गए तो टूट गए

सोच समझ कर होंट हिलाने पड़ते हैं

तीर कमाँ से छूट गए तो छूट गए

शहज़ादे के खेल खिलोने थोड़ी थे

मेरे सपने टूट गए तो टूट गए

इस बस्ती में कौन किसी का दुख रोये

भाग किसी के फूट गए तो फूट गए

छोड़ो रोना धोना रिष्ते नातों पर

कच्चे धागे टूट गए तो टूट गए

अब के बिछड़े तो मर जाएंगे ‘परवाज़’

हाथ अगर अब छूट गए तो छूट गए

मंगलवार, 15 दिसंबर 2009

ता उम्र मैं पीता रहूँ यारव वो मय तेरे हुश्न की--------(डा श्याम गुप्त)

ऐ हसीं ता ज़िंदगी ओठों पै तेरा नाम हो |
पहलू में कायनात हो उसपे लिखा तेरा नाम हो |


ता उम्र मैं पीता रहूँ यारव वो मय तेरे हुश्न की,
हो हसीं रुखसत का दिन बाहों में तू हो जाम हो |


जाम तेरे वस्ल का और नूर उसके शबाब का,
उम्र भर छलका रहे यूंही ज़िंदगी की शाम हो |


नगमे तुम्हारे प्यार के और सिज़दा रब के नाम का,
पढ़ता रहूँ झुकता रहूँ यही ज़िंदगी का मुकाम हो |


चर्चे तेरे ज़लवों के हों और ज़लवा रब के नाम का,
सदके भी हों सज़दे भी हों यूही ज़िंदगी ये तमाम हो |


या रब तेरी दुनिया में क्या एसा भी कोई तौर है,
पीता रहूँ , ज़न्नत मिले जब रुखसते मुकाम हो |


है इब्तिदा , रुखसत के दिन ओठों पै तेरा नाम हो,
हाथ में कागज़-कलम स्याही से लिखा 'श्याम' हो ||

रविवार, 13 दिसंबर 2009

सत्य ! तुम्हें मैं जीना चाहता हूँ ---------- (प्रताप नारायण सिंह )

सत्य !
तुम्हें मैं जीना चाहता हूँ ।




चेतनता के प्रथम पग पर ही
मुझे ओढ़ा दिए गए
आवरणों के रंध्रों में छुपे
तृष्णा के असंख्य नन्हे विषधरों
के निरंतर तीक्ष्ण होते गए विषदंतों से
क्षत विक्षत,
अचेतना के भँवर में डूबते उतराते,
तुम्हारे गात को
अपनी आँखों में भरना चाहता हूँ.




प्रचलन और परिपाटियों से जन्मे,
मेरे भ्रामक अहम की
जिजीविषा के लिए,
तुम्हारे हिस्से की रोटी छीनकर,
अनवरत तुम्हें भूखा रख कर,
हड्डियों पर चढ़े खाल का
पुतला बना दिए गए
तुम्हारे बदन को
स्पर्श करना चाहता हूँ.



मेरी निरर्थक
श्रेष्ठता सिद्धि के
निरंतर बढ़ते गए
दबावों से झुक कर
दुहरा हुए
तुम्हारे मेरुदंड को
स्व के साहस की
खपच्चियों का सहारा देकर
उन्हें पुनः सीधा कर
तुम्हारे साथ चलना चाहता हूँ.



सत्य !
तुम्हें मैं जीना चाहता हूँ...
एकाकीपन के पर्दे में छुपकर नहीं...
लज्जा के घेरे में सिमटकर नहीं...
जुगुप्सा की पर्तों में लिपटकर नहीं...
अपितु
अपना सम्पूर्ण आत्मबल सहेज,
तुम्हारे रुग्ण तन मन को व्याधि मुक्त कर...
मन की सतह पर उग आयीं
वर्जनाओं और निषिद्धियों की
कटीली झाड़ियों को नष्ट कर...
सम्पूर्ण जगत के समक्ष,
पूर्णतः प्रेम युक्त हो,
पूरे मान और अभिमान के साथ
तुम्हें जीना चाहता हूँ.

गुरुवार, 10 दिसंबर 2009

सब ठीक है

जॉच प्रवृष्ठि

बुधवार, 9 दिसंबर 2009

आज हिन्‍दी साहित्‍य मंच अपने डोमेन पर

आज हिन्दी साहित् मंच अपने डोमेन पर गया है। अभी तक हिन्दी साहित् मंच ब्लागस्पॉट (hindisahityamanch.blogspot.com) पर काम कर रहा था, आज से http://www.hindisahityamanch.com के डोमेन पर गया है। यह सभी सदस्यो के सूचनार्थ एवं जांच प्रवृष्टि है ताकि पता किया जा सकें कि ब्‍लाग पर कोई दिक्कत तो नही आ रही है। सभी सदस्‍यो से अनुरोध है कि 24 घन्‍टे तक कोई कोई पोस्‍ट डालने का प्रयास न करे, ताकि कुछ कमी हो तो दूर की जा सके।

सोमवार, 7 दिसंबर 2009

अफ़सर ................कहानी ( डाo श्याम गुप्ता )


मैं रेस्ट हाउस के बरांडे में कुर्सी पर बैठा हुआ हूँ सामने आम के पेड़ के नीचे बच्चे पत्थर मार- मार कर आम तोड़ रहे हैं कुछ पेड़ पर चढ़े हुए हैं बाहर बर्षा की हल्की-हल्की बूँदें (फुहारें) गिर रहीं हें सामने पहाडी पर कुछ बादल रेंगते हुए जारहे हैं, कुछ साधनारत योगी की भांति जमे हुए हैं निरंतर बहती हुई पर्वतीय नदी की धारा 'चरैवेति -चरेवैति ' का सन्देश देती हुई प्रतीत होती है बच्चों के शोर में मैं मानो अतीत में खोजाता हूँ गाँव में व्यतीत छुट्टियां , गाँव के संगी साथी .... बर्षा के जल से भरे हुए गाँव के तालाव पर कीचड में घूमते हुए; मेढ़कों को पकड़ते हुए , घुटनों -घुटनों जल में दौड़ते हुए , मूसलाधार बर्षा के पानी में ठिठुर-ठिठुर कर नहाते हुए ; एक-एक करके सभी चित्र मेरी आँखों के सामने तैरने लगते हैं सामने अभी-अभी पेड़ से टूटकर एक पका आम गिरा है, बच्चों की अभी उस पर निगाह नहीं गयी है बड़ी तीब्र इच्छा होती है उठाकर चूसने की अचानक ही लगता है जैसे मैं बहुत हल्का होगया हूँ और बहुत छोटा दौड़कर आम उठा लेता हूँ वह! क्या मिठास है !मैं पत्थर फेंक-फेंक कर आम गिराने लगता हूँ कच्चे-पक्के , मीठे-खट्टे अब पद पर चढ कर आम तोड़ने लगता हूँ पानी कुछ तेज बरसने लगा है ,मैं कच्ची पगडंडियों पर नंगे पाँव दौड़ा चला जारहा हूँ , कीचड भरे रास्ते पर पानी और तेज बरसने लगता है बरसाती नदी अब अजगर के भांति फेन उगलती हुई फुफकारने लगी है पानी अब मूसलाधार बरसने लगा है सारी घाटी बादलों की गडगडाहट से भर जाती है और मैं बच्चों के झुण्ड में इधर-उधर दौड़ते हुए गारहा हूँ ---


""बरसों राम धडाके से , बुढ़िया मरे पडाके से ""



" साहब जी ! मोटर ट्राली तैयार है ", अचानक ही बूटा राम की आवाज़ से मेरी तंद्रा टूट जाती है ,सामने पेड़ से गिरा आम अब भी वहीं पडा हुआ है बच्चे वैसे ही खेल रहे हैं मैं उठकर चलदेता हूँ वरांडे से वाहर हल्की-हल्की फुहारों में सामने से दौलत राम व बूटा राम छाता लेकर दौड़ते हुए आते हैं , ' साहब जी ऐसे तो आप भीग जाएँ गे ' और मैं गंभीरता ओढ़ कर बच्चों को, पेड़ को .आम को व मौसम को हसरत भरी निगाह से देखता हुआ टूर पर चल देता हूँ

मंगलवार, 1 दिसंबर 2009

हिन्दी साहित्य मंच की कविता प्रतियोगिता का परिणाम घोषित - विजेताओं को बधाई

हिन्दी साहित्य मंच द्वारा आयोजित तृतीय कविता प्रतियोगिता का परिणाम घोषित कर दिया गया है । हिन्दी साहित्य मंच द्वारा विजेता को एक प्रशस्ति पत्र और साहित्य से जुड़ी हुई पुस्तकें पुरस्कार स्वरूप प्रदान की जाती है । इस बार हमें अधिक संख्या में कविताएं प्राप्त हुई । जिससे हमारा प्रयास सफल हो पाया । इसी तरह की भागीदारी की उम्मीद भी करता है यह मंच । आप भी अपना सहयोग कर हिन्दी साहित्य को आगे बढ़ाने में अपना योगदान दे सकते हैं । हिन्दी साहित्य मंच की तृतीय

कविता प्रतियोगिता के विजेता ---------

प्रथम स्थान - गरिमा ( रचना - " प्रतिक्षा- शिविर " के लिए )

द्वितीय स्थान - प्रताप सिहं ( रचना - " रौद्र-रौद्र " के लिए )

तृतीय स्थान - डा० श्याम गुप्ता ( रचना - " कितने इन्द्रधनुष थे " के लिए )

सांत्वना पुरस्कार ------


प्रथम स्थान - रश्मि प्रभा
( रचना - " आओ पिछे लौट चले " के लिए )

द्वतीय स्थान - कीर्ति कुमार सिँह ( रचना - " मिलना " के लिए )

तृतीय स्थान - सरस्वती प्रसाद
( रचना - " मैं चाहूंगी तुमसे कभी मिलूं " ले लिए )


हिन्दी साहित्य मंच की ओर से सभी विजेताओं को बहुत बहुत बधाई । और जिन्होनें ने अपनी रचना इस प्रतियोगिता हेतु भेजी हम उनके आभारी हैं । अगली प्रतियोगिता में दुबारा से हमें आपकी रचनाओं का इतंजार रहेगा । किसी भी तरह की जानकारी के लिए आप हमें इस अंतरजाल पते (hindisahityamanch@gmail.com ) पर या इस नम्बंर पर 09891584813 संपर्क कर सकते है ।

आभार हिन्दी
साहित्य
मंच
(संचालक)