नारी आज जरूरत आन पडी
नि्रीक्षण् की परीक्षण की
उन सृजनात्मक संम्पदाओं के
अवलोकन की
जिन पर थी
समाज की नींव पडी
प्रभू ने दिया नारी को
करुणा वत्सल्य का वरदान
उसके कन्धों पर
रख दिया
सृष्टी सृजन
शिशु-वृँद क चरित्र और्
भविश्य का निर्माण
बेशक तुम्हारी आज़ादी पर
तुम्हारा है हक
मगर फर्ज़ को भी भूलो मत
अगर बच्ची देश का भविश्य
हो जायेगा दिशाहीन
अपनी सभ्यता संस्कृति से विहीन
तो तेरे गौरव मे क्या रह जायेगा?
क्यों कि बदलते परिवेश मे
आज़ादी के आवेश मे
पत्नि, माँ के पास समय
कहाँ रह जायेगा
उठ,कर आत्म मंथन
कि समाज को दिशा देने की
जिम्मेदारी कौन निभायेगा
ए त्याग की मूरती
तेरा त्यागमयी रूप
कब काम आयेगा
पाश्चात्य सभ्यता से बाहर आ
अपनी गौरवनयी संस्कृति को बचा।।।
5 comments:
मिथिलेश धन्यवाद ये कविता लगाने का
bahut hi sarthak aur prernadayi rachna.
निर्मला जी , आपने कविता के माध्यम से भारतीय संस्कृति पर अच्छा प्रयास किया है ।
बेहद उम्दा रचना ।
बहुत ही सार्थक ,स्पष्ट व सुन्दर विवेचना है , सो काल्ड नारी विमर्श पर । बधाई ।
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