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मंगलवार, 17 नवंबर 2009

जैसे इन सब को पता है कि..............................................तुम आ चुकी हो

हवाओं में प्यार की खुशबू,
बिखरी हुई है ,
फिजाएं भी महकी,
हुई है,
खामोश रातें रौशन ,
हुई हैं,
चांदनी भी चंचल ,
हुई है ,
बूदें जैसे मोती,
हुई हैं,
सूरज की किरणें चमकीली
हुई हैं,
बागों की कलियां खिल सी ,
गयी हैं,
अम्बर से घटाएं ,
बहने लगी हैं,
मिट्टी की खुशबू,
फैली हुई हैं, चारो तरफ
जैसे इन सब को पता है कि-
तुम आ चुकी हो,
वापस आ चुकी हो।।

9 comments:

डॉ. राजेश नीरव ने कहा…

खूबसूरत कविता....

Mithilesh dubey ने कहा…

बेहद सुन्दर अभिव्यक्ति । बधाई

M VERMA ने कहा…

अज़ीज के वापसी की बधाई

आपके चेहरे के रौनक ने बयाँ कर दिया होगा.

निर्मला कपिला ने कहा…

बहुत खूबसूरत कविता है बधाई

ritu raj ने कहा…

achchi kavita hai.

ritu raj ने कहा…

achchi kavita hai.

Pratik Maheshwari ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Pratik Maheshwari ने कहा…

सुन्दर.. पर कौन आ गयी है :)

आभार
प्रतीक माहेश्वरी

बेनामी ने कहा…

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