हवाओं में प्यार की खुशबू,
बिखरी हुई है ,
फिजाएं भी महकी,
हुई है,
खामोश रातें रौशन ,
हुई हैं,
चांदनी भी चंचल ,
हुई है ,
बूदें जैसे मोती,
हुई हैं,
सूरज की किरणें चमकीली
हुई हैं,
बागों की कलियां खिल सी ,
गयी हैं,
अम्बर से घटाएं ,
बहने लगी हैं,
मिट्टी की खुशबू,
फैली हुई हैं, चारो तरफ
जैसे इन सब को पता है कि-
तुम आ चुकी हो,
वापस आ चुकी हो।।
मंगलवार, 17 नवंबर 2009
जैसे इन सब को पता है कि..............................................तुम आ चुकी हो
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
9 comments:
खूबसूरत कविता....
बेहद सुन्दर अभिव्यक्ति । बधाई
अज़ीज के वापसी की बधाई
आपके चेहरे के रौनक ने बयाँ कर दिया होगा.
बहुत खूबसूरत कविता है बधाई
achchi kavita hai.
achchi kavita hai.
सुन्दर.. पर कौन आ गयी है :)
आभार
प्रतीक माहेश्वरी
http://markonzo.edu archbishop http://augmentin.indieword.com/ http://blog.bakililar.az/enalaects/ http://aviary.com/artists/Singulair-side http://blog.bakililar.az/norvasc/ http://www.netknowledgenow.com/members/Verapamil-Side-Effects.aspx monopoly http://www.projectopus.com/user/53177
एक टिप्पणी भेजें