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शनिवार, 10 अक्तूबर 2009

मेरे इस संसार को यारों किसने खाक बना डाला-------"कुलदीप कुमार मिश्र"

मेरे इस संसार को यारों किसने खाक बना डाला

आग लगा दी दुनिया ने बस्ती को राख बना डाला

चले नहीं थे काँटों पर हम तपती रेत मिली मुझको

फिर भी निकल पड़े हम घर से फूल समझ उसको यारों

मुझे क्या पता लोग मेरे एक दिन दुश्मन हों जायेंगे

मेरे बिस्तर से मुझे हटा उस पर ख़ुद ही सो जायेंगे

आया था तूफान एक दिन जब मै छोटा था

सभी लोग हँसते थे यारों, जब मै रोता था

गया लड़कपन जब से मेरा तब से मै कुछ बड़ा हुआ

रेत को लेकर मुट्ठी में फिर से थोड़ा मै खड़ा हुआ

मेरी इस दुनिया को यारों किसने नर्क बना डाला

ज़हर पिला कर उसने तो लोगों को सर्प बना डाला

मेरे इस संसार को यारों किसने खाक बना डाला

आग लगा दी दुनिया ने बस्ती को राख बना डाला

4 comments:

निर्मला कपिला ने कहा…

गया लड़कपन जब से मेरा तब से मै कुछ बड़ा हुआ

रेत को लेकर मुट्ठी में फिर से थोड़ा मै खड़ा हुआ

मेरी इस दुनिया को यारों किसने नर्क बना डाला

ज़हर पिला कर उसने तो लोगों को सर्प बना डाला

मेरे इस संसार को यारों किसने खाक बना डाला

आग लगा दी दुनिया ने बस्ती को राख बना डाल
लाजवाब अभिव्यक्ति है बधाइ

Unknown ने कहा…

bahut hi accha likha aapne

Gurramkonda Neeraja ने कहा…

ज़हर पिलाकर सबको सर्प बनाने वाले तो कई मिले, ज़हर पीकर अमृत बरसानेवाला नहीं मिला.
अच्छी रचना के लिए बधाई.

Mithilesh dubey ने कहा…

बहुत ही उम्दा व लाजवाब रचना।