मेरे इस संसार को यारों किसने खाक बना डाला
आग लगा दी दुनिया ने बस्ती को राख बना डाला
चले नहीं थे काँटों पर हम तपती रेत मिली मुझको
फिर भी निकल पड़े हम घर से फूल समझ उसको यारों
मुझे क्या पता लोग मेरे एक दिन दुश्मन हों जायेंगे
मेरे बिस्तर से मुझे हटा उस पर ख़ुद ही सो जायेंगे
आया था तूफान एक दिन जब मै छोटा था
सभी लोग हँसते थे यारों, जब मै रोता था
गया लड़कपन जब से मेरा तब से मै कुछ बड़ा हुआ
रेत को लेकर मुट्ठी में फिर से थोड़ा मै खड़ा हुआ
मेरी इस दुनिया को यारों किसने नर्क बना डाला
ज़हर पिला कर उसने तो लोगों को सर्प बना डाला
मेरे इस संसार को यारों किसने खाक बना डाला
आग लगा दी दुनिया ने बस्ती को राख बना डाला
4 comments:
गया लड़कपन जब से मेरा तब से मै कुछ बड़ा हुआ
रेत को लेकर मुट्ठी में फिर से थोड़ा मै खड़ा हुआ
मेरी इस दुनिया को यारों किसने नर्क बना डाला
ज़हर पिला कर उसने तो लोगों को सर्प बना डाला
मेरे इस संसार को यारों किसने खाक बना डाला
आग लगा दी दुनिया ने बस्ती को राख बना डाल
लाजवाब अभिव्यक्ति है बधाइ
bahut hi accha likha aapne
ज़हर पिलाकर सबको सर्प बनाने वाले तो कई मिले, ज़हर पीकर अमृत बरसानेवाला नहीं मिला.
अच्छी रचना के लिए बधाई.
बहुत ही उम्दा व लाजवाब रचना।
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