बारिशों में नहाना भूल गए
तुम भी क्या वो जमाना भूल गए
कम्प्यूटर किताबें याद रहीं
तितलियों का ठिकाना भूल गए
फल तो आते नहीं थे पेडों पर
अब तो पंछी भी आना भूल गए
यूँ उसे याद कर के रोते हैं
जेसे कोई ख़जाना भूल गए
मैं तो बचपन से ही हूँ संजीदा
तुम भी अब मुस्कराना भूल गये
7 comments:
बहुत ही उम्दा गजल।
शानदार अभिव्यक्ति। बधाई
waah lajawab
कम्प्यूटर किताबें याद रहीं
तितलियों का ठिकाना भूल गए
फल तो आते नहीं थे पेडों पर
अब तो पंछी भी आना भूल गए
बेहतरीन.
क्या बात है । बहुत ही सुन्दर रचना । बधाई
बहुत ही सुन्दर रचना...
आप की इस ग़ज़ल में विचार, अभिव्यक्ति शैली-शिल्प और संप्रेषण के अनेक नूतन क्षितिज उद्घाटित हो रहे हैं।
एक टिप्पणी भेजें