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शनिवार, 26 सितंबर 2009

ख़्वाब देखें थे घर में क्या क्या कुछ-------- " जतिन्दर परवाज़"

ख़्वाब देखें थे घर में क्या क्या कुछ



मुश्किलें हैं सफर में क्या क्या कुछ



फूल से जिस्म चाँद से चेहरे



तैरता है नज़र में क्या क्या कुछ



तेरी यादें भी अहल-ए-दुनिया भी



हम ने रक्खा है सर में क्या क्या कुछ



ढूढ़ते हैं तो कुछ नहीं मिलता



था हमारे भी घर में क्या क्या कुछ



शाम तक तो नगर सलामत था



हो गया रात भर में क्या क्या कुछ



हम से पूछो न जिंदगी ‘परवाज़’



थी हमारी नजर में क्या क्या कुछ

4 comments:

Unknown ने कहा…

ख़्वाब देखें थे घर में क्या क्या कुछ

मुश्किलें हैं सफर में क्या क्या कुछ

फूल से जिस्म चाँद से चेहरे

तैरता है नज़र में क्या क्या कुछ



बहुत खूब ।

Tulsibhai ने कहा…

" bahut khub "

----- eksacchai { AAWAZ }

http://eksacchai.blogspot.com

http://hindimasti4u.blogspot.com

निर्मला कपिला ने कहा…

बहुत खूब धन्यवाद्

Mithilesh dubey ने कहा…

बहुत खुब लाजवाब रचना।