ख़्वाब देखें थे घर में क्या क्या कुछ
मुश्किलें हैं सफर में क्या क्या कुछ
फूल से जिस्म चाँद से चेहरे
तैरता है नज़र में क्या क्या कुछ
तेरी यादें भी अहल-ए-दुनिया भी
हम ने रक्खा है सर में क्या क्या कुछ
ढूढ़ते हैं तो कुछ नहीं मिलता
था हमारे भी घर में क्या क्या कुछ
शाम तक तो नगर सलामत था
हो गया रात भर में क्या क्या कुछ
हम से पूछो न जिंदगी ‘परवाज़’
थी हमारी नजर में क्या क्या कुछ
4 comments:
ख़्वाब देखें थे घर में क्या क्या कुछ
मुश्किलें हैं सफर में क्या क्या कुछ
फूल से जिस्म चाँद से चेहरे
तैरता है नज़र में क्या क्या कुछ
बहुत खूब ।
" bahut khub "
----- eksacchai { AAWAZ }
http://eksacchai.blogspot.com
http://hindimasti4u.blogspot.com
बहुत खूब धन्यवाद्
बहुत खुब लाजवाब रचना।
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